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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं समर्पित करते हुए जो विचार अभिव्यक्त किये वे शब्द आज भी मेरे स्मृति-पटल पर अंकित हैं
"मेरे पिताजी सिधारे, माँ भी गई, पर मुझे लग रहा है कि म्हारां मायत (माता-पिता) आज ही मर्या । मैं जन्मजात मन्दिर मार्गी हूँ , मैं कई परम्परा रा महापुरुषों रा दर्शन कऱ्या। साधु में तीन विशेषता हुवै - ज्ञान, क्रिया व पुण्यवानी। कोई में ज्ञान उच्च कोटि रौ, क्रिया कोनी, कोई क्रिया रा धणी तो ज्ञान री गहराई कोनी, कदाचित् दोनुं बाता हुवै तो पुण्यवानी कोनी, पर गुरु महाराज में मैं तीनूं ही बातां ज्ञान, क्रिया अर पुण्यवानी रो समन्वय देखियो।”
इतर परम्परा के अग्रगण्य सुज्ञ श्रावकों की भी आपके प्रति कैसी आस्था ! आपके व्यक्तित्व-कृतित्व से कितने प्रभावित ! वस्तुत: पूज्यपाद मात्र रत्नवंश परम्परा के ही आचार्य नहीं, वरन् इस युग में जिन शासन के युग प्रधान आचार्य थे, जिनके साधना सम्पूरित जीवन, निर्मल आचार व ज्ञान गरिमा से समूचा जैन समाज तो प्रभावित था ही, जैनेतर धार्मिक जन भी कम प्रभावित नहीं थे।
-सी-५५ शास्त्रीनगर जोधपुर