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________________ गुणरत्नाकर महापुरुष उपाध्यायप्रवर श्री मानचन्द्र जी म.सा. हमारे यहां तीन प्रकार के आचार्य कहे गये हैं। एक कलाचार्य, एक शिल्पाचार्य और एक धर्माचार्य | आचार्य भगवन्त कलाचारी, शिल्पाचारी और धर्माचारी थे । व्यक्ति को आकर्षित करने की उनमें अद्भुत कला थी। उनके संसर्ग में जो भी आता, उसे वे आगे बढ़ाते । उनके पास जो कोई आया, लेकर ही गया । कहना चाहिये - वे चुम्बक थे, आकर्षित करने की उनकी कला अपने आप में अनूठी थी। आचार्य भगवन्त पारस थे - लोहे को सोना बनाना | जानते थे । इधर-उधर भटकने वाले, दुर्व्यसनों के शिकारी और साधारण से साधारण जिस किसी व्यक्ति ने उस महापुरुष के दर्शन किए, उसके जीवन में सद्गुण आए ही । गुरुदेव ने चातुर्मास के लिये मुझे दिल्ली भेजा । मैं नाम लेकर चला गया। दिल्ली में कई ऐसे श्रावक थे, | जिन्होंने आचार्य श्री हस्तीमलजी म. के दर्शन नहीं किये। आचार्य भगवंत का तीस वर्ष पहले दिल्ली में चातुर्मास हुआ था, परन्तु पुराने पुराने श्रावक तो चले गये और बच्चे जवान हो गये। दिल्ली-वासियों ने जब संतों का जीवन | देखा तो उनके मन में आया - इनके गुरु कैसे होंगे ? दिल्ली के श्रावक आचार्य भगवंत के दर्शनार्थ आये । आ कहने लगे - 'महाराज ! हमने तो भगवन्त देख लिये ।' गुरुदेव हर व्यक्ति के जीवन को ऊंचा उठाने वाले कलाचारी थे । उस महापुरुष ने एक शिल्पाचार्य रूप में भी कइयों का जीवन निर्माण किया। मेरी दीक्षा के बाद बड़ी दीक्षा महामंदिर में हुई । गुरुदेव मूथाजी के मंदिर पधारे और कहा - 'मेरे को अप्रमत्त भाव में रहकर बतलाना ।' हर समय उनकी यही शिक्षा रहती थी। वे हर समय शिक्षा देते ही रहते थे । वे महापुरुष चाहे जहाँ रहते, हर समय शिक्षा देते ही रहते। जयपुर में रामनिवास बाग से गुजर रहे थे। उस समय शेर गरज रहा था। आचार्य भगवंत ने फरमाया- 'क्या बोलता है ?' आचार्य भगवंत से मैंने कहा - ' बाबजी ! | शेर गरज रहा है।' गुरुदेव बोले-'मैं हूँ, मैं हूँ कह कर बता रहा है कि मैं पिंजरे में पड़ा हूँ। इसलिये मेरी शक्ति काम नहीं कर रही है। यह आत्मा भी शरीर रूपी पिंजरे में रही हुई है। आत्मा भी समय-समय पर हुंकारती है— मैं हूँ | अर्थात् मैं अनन्त ज्ञान से सम्पन्न हूँ, मैं अनन्त दर्शन से सम्पन्न हूँ आदि आदि ।' एक बार भगवंत सुबोध कॉलेज में खड़े थे । पास पत्थर गढ़ने वाले व्यक्ति पत्थर गढ़ रहे थे । पत्थर गढ़ते वह कारीगर पानी छांट रहा था। गुरुदेव ने पूछा- 'यह क्या कर रहा है?' मैंने कहा - 'काम कर रहा है।' आचार्य भगवन्त ने कहा – “ पत्थर पर पानी डालकर नरम बना रहा है, पत्थर कोमल होगा तो गढा जाएगा।" आचार्य भगवंत ने आगे फरमाया कि 'शिष्य भी कोमल होगा तो गढ़ा जाएगा।' वे हर समय जीवन-निर्माण की बात बताया करते | थे। उनकी छोटी-छोटी बातों में कितनी बड़ी शिक्षाएँ होती थीं। वे शिल्पाचार्य की तरह थे । धर्माचार्य थे ही। वर्षों तक चतुर्विध संघ को कुशलतापूर्वक संभाला और उसी का परिणाम है कि आज यह फुलवारी अनेक रंगों में दिखाई दे रही है। आज चतुर्विध संघ का जो सुन्दर रूप दिखाई दे रहा है, वह | उन्हीं महापुरुषों के पुण्य प्रताप से है ।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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