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________________ BIRGI- V IC-. (तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड ४८७|| | यह कथन आपके माहात्म्य को स्पष्ट करता है। भगवंत शिथिलाचार रूप विकार की विशुद्धि कर सारणा, वारणा, धारणा के पोषक रहे। आपने संघ के || !! संगठन, संचालन, संरक्षण, संवर्धन, अनुशासन एवं सर्वतोमुखी विकास व अभ्युत्थान हेतु जीवन समर्पित कर दिया। सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार । लाचन अनंत उघारिया, अनंत दिखावन हार ।।" सद्गुरु पूज्य भगवंत के चरणों में भक्तों की भीड़ लगी रहती थी। जिज्ञासु अपनी जिज्ञासाएँ लेकर आते || | और संतुष्टि प्राप्त कर चले जाते। आशावादी अपनी आशाएँ लेकर आते और प्रसन्नता से आप्लावित होकर जाते ।। श्रद्धालु अपनी श्रद्धा लेकर आते और व्रत-नियम के उपहार से उपकृत होकर जाते । भक्त अपनी भक्ति से आते और आत्मिक शक्ति लेकर चले जाते। भावुक अपने भावनायुक्त अरमान लेकर आते और भाव विभोर होकर लौट जाते। सभी समस्याओं का समाधान, आपश्री के चरणों में होता था। संध्या-समय सूर्य जब अस्ताचल की ओर जाता है तो उसका प्रकाश भी मंद हो जाता है। किन्तु आचार्य भगवन्त सूर्य से भी अधिक विलक्षण व्यक्तित्व के धनी थे। जीवन की सांध्य-वेला में भी उनका ज्ञान सूर्य नई-नई। किरणें फेंककर सबको सावधान कर रहा था, समाधि-साधना चमत्कृत कर रही थी। आप आंख बंद करके भी || चौबीसों घंटे जागृत थे, आत्मस्थ थे, अपने आप में लीन थे, अप्रमत्त थे। आपने भोजन तो छोड़ दिया, पर भजन नहीं | छोड़ा। चौबीसों घंटे माला आपके हाथ में सुशोभित थी। अंगुलियों पर ललाई आने पर आपके हाथ से माला लेने | पर भी पौर पर माला चलती रहती, परिणामस्वरूप माला फिर हाथ में देनी पड़ती। चरणों में बैठकर ऐसा महसूस || होता था कि मानो ज्ञान-सिंधु के चरणों में बैठे हैं। नित्य नवीन अनुभव मिलते रहते थे। आपकी विशेषताओं का और गुणों का कथन करना असंभव है। क्या कभी विराट् सागर को अंजलि में भरा जा सकता है ? मेरु को तराजू में तोला जा सकता है ? पृथ्वी को बाल चरण से नापा जा सकता है? कदाचित् ये सब संभव हो सकता है, परन्तु गुण-खान पूज्य गुरुभगवन्त के गुण-गान संभव नहीं। जिनका जीवन कथनी का नहीं करणी का, राग का नहीं त्याग का सन्देश देता है , जन-जन के हृदय सम्राट् , साधकों के जीवन निर्माता, भक्तों के भगवान, साधु मर्यादा के उत्कृष्ट पालक एवं संरक्षक, असीम गुणों के अक्षय भंडार, संयम - जीवन प्रदाता, इस जीवन के कुशल शिल्पकार परम पूज्य आचार्य भगवन्त को मैंने अपने चर्म चक्षुओं से जिस रूप में देखा, वह महज अनुभूति का विषय है । इस जीवन में हर क्षण उन महनीय गुरुवर्य का अनन्त उपकार रहा है, संयम के हर कदम पर उनकी महती प्रेरणा रही है, उनका वरदहस्त सदा पाथेय बन सम्बल देता रहा है । साधक जीवन की अभिव्यक्ति वाले अनेक सूत्र भगवन्त के जीवन में साकार सिद्ध थे। उनके जीवन-सूत्र शिक्षा बन साधक-जीवन का पथ प्रशस्त कर रहे हैं। संवत् २००९ के नागौर चातुर्मास में आचार्य भगवंत ने अपने जीवन में सधा हुआ एक सूत्र दिया - "खण निकम्मो रहणो नहीं, करणो आतम काम। भणणो, गुणणो, सीखणो, रमणो ज्ञान आराम ।।” चौदह वर्ष की वय में इस बालक ने (मैंने) नागौर चातुर्मास में देखा कि समग्र संसार जिस समय गहन निद्रा में सोया रहता है, उस समय भी वह अप्रमत्त साधक स्मरण व ध्यान में लीन रहता । रात्रि १२ से ३ बजे के बीच जब भी भगवन्त जाग जाते, मैंने उन्हें सीढियों में एक पांव ध्यानस्थ खड़े होकर साधना करते पाया। भोगियों के
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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