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तृतीय खण्ड व्यक्तित्व खण्ड
प्रस्तुत खण्ड दो स्तबकों में विभक्त है- 1. संस्मरणों में झलकता व्यक्तित्व 2. काव्यांजलि में निलीन व्यक्तित्व। प्रथम स्तबक गद्य में है तथा द्वितीय स्तबक पद्य में है।
संस्मरण लेखक की चेतना से सीधे जुड़े रहते हैं, जिनका अवगाहन कर पाठक गुणसमुद्र आचार्यप्रवर की विशेषताओं का स्वयं आकलन कर सकता है। उच्चकोटि के चारित्रनिष्ठ साधक संत, गहनविचारक एवं युगमनीषी महापुरुष के निस्पृहता, अप्रमत्तता, उदारता, करुणाभाव, गुणियों के प्रति प्रमोदभाव, वचन-सिद्धि, भावि-द्रष्टुत्व, चारित्र-पालन के प्रति सजगता, आत्मीयता, असीम आत्मशक्ति, विद्वत्ता, पात्रता की परख, दूरदर्शिता आदि अनेक गुणों का इन संस्मरणों से बोध होता है।
द्वितीय स्तबक में काव्यमय गुणगान है, जिसमें आचार्यप्रवर का साधनाशील एवं युगप्रभावक व्यक्तित्व उजागर हुआ है।
इन स्तबकों का अनुशीलन करने से यह स्वतः बोध होता है कि आचार्यप्रवर एक महान् असाधारण संत की विशेषताओं से ओत-प्रोत थे।