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द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड
३४५ होंगी जो सरस और उत्तेजक पदार्थों का सेवन करता है। हमारे भीतर जो चेतना का नाग है वह सोया पड़ा है, उसको जगाने के लिए भगवान की वाणी का मधुर स्वर || सुनाना पड़ेगा। जब तक विषय-कषाय नहीं हटेंगे, तब तक जीवन का मैलापन नहीं हटेगा। • जिस तरह मनुष्य को अपनी ही जूती काट खाती है, उसी तरह अपना ही मन जीव को दण्ड देता है।
यदि अपने को, अपनी वाणी को, अपनी काया को आत्मा के अभिमुख कर दिया, आत्म-भाव में लगा दिया तो |
वह मन अदंड का कारण बनेगा। • सामायिक की साधना करोगे तो तुम्हारा मन अदंड बन जाएगा, वचन भी अदंड बन जाएगा और काया भी अदंड |
बन जाएगी।
दण्ड से अदण्ड में लाने वाली क्रिया का नाम सामायिक है। • धर्म-स्थान मे बैठेंगे, महापुरुषों से सम्पर्क करेंगे तो दिल-दिमाग आर्त और रौद्र की ओर नहीं जाएगा। • मोक्ष की ओर आगे बढ़ना है तो अहंकार, मान अथवा घमंड को चकनाचूर कीजिए। . विकार से रहित होकर तपस्या करें तो कर्मों की बहुत बड़ी निर्जरा होती है। • यदि समय थोड़ा है तो थोड़े समय में कर्म काटने का साधन है, 'तपस्या'। • आत्म-शुद्धि के लिए गुरु के सामने जाकर अपनी आलोचना और प्रायश्चित्त करना चाहिए। • हर सामाजिक और धार्मिक कार्यकर्ता को समझना चाहिए कि सामाजिक और धार्मिक रीति-रिवाजों पर नियन्त्रण |
रखना जरूरी है। सच्चे साधक अपनी गलती को मानने में और उसको गुरुजनों के सामने प्रकट करने में और प्रायश्चित लेने में || संकोच नहीं करते।
आत्मा की शुद्धि के सूत्र हैं - निरीक्षण, परीक्षण और शिक्षण। 1. हर एक को अपना जीवन शुद्ध करने के लिए अपनी आलोचना खुद करनी है, बारीकी से देखना है।
काल की गति विचित्र है। वह न बच्चा देखता है न जवान, न बूढ़ा और न तरुणी, एकदम आकर धर दबोचता
दुःख-मुक्ति का रास्ता यह है कि हित-मार्ग को जानो, पहचानो, पकड़ो और तदनुकूल आचरण करो। • धन के बीच अनासक्त रहने वाला चिन्तित नहीं होगा, किन्तु जो माया का नशा कर लेता है, उसको सदा
चिन्ताएँ घेरे रहेंगी। यदि इन्कम के पीछे पाँच या दस टका भार हल्का करने की मन में आवे और आसक्ति तथा राग कम हो तो मैं | कहता हूँ कि आसक्ति कम होते ही आपका रोग और शोक भी कम हो जाएगा। धन बढ़ने के साथ-साथ चिन्ता बढ़ने से रोग भी अधिक बढ़ता है, इसलिए आप लोग यह समझें कि जो धन मेरे | पास है वह मेरा नहीं है, मैं तो एक ट्रस्टी हूँ, संरक्षक हूँ।।