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द्वितीय खण्ड
दर्शन खण्ड
प्रस्तुत खण्ड दो अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय 'अमृत वाक्' में संकलित विचार अज्ञान रूपी अंधकार में भटके जिज्ञासु के लिए ज्योतिस्तम्भ की भांति प्रकाशक हैं। एक-एक वचन अमृत तुल्य होने के कारण इस अध्ययन का नाम 'अमृत वाक्' रखा गया है। आचार्यप्रवर श्री हस्ती के प्रवचन-साहित्य एवं दैनन्दिनियों से चयनित ये विचार जन-जन के लिए मार्गदर्शक हैं तथा किंकर्तव्यविमूढ और उलझे हुए मस्तिष्क को सम्यक् समाधान प्रदान करते हैं।
द्वितीय अध्याय 'हस्ती उवाच' में 129 विषयों पर पूज्यपाद आचार्यप्रवर के मार्गदर्शक एवं प्रेरक विचारों का संकलन है, जो श्रावकों एवं श्रमणों दोनों को अपनी साधना में आगे बढ़ाने हेतु अमूल्य पाथेय एवं ज्ञानचक्षु का उन्मीलन करने वाली औषधि प्रदान करते हैं। व्यक्ति, समाज एवं संघ के दोषों को दूर कर जीवन को उच्च बनाने में ये विविध विचार अवश्य ही सहायक सिद्ध होंगे।