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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं (२९२ पाठ एवं प्रतिक्रमण के पश्चात् वन्दना के समय आचार्यदेव ने हर शिष्य सन्त से हाथ जोड़कर क्षमायाचना की। गुरुदेव की इस महानता, सरलता एवं सजगता से हर सन्त का हृदय श्रद्धाभिभूत एवं गद्गद हो उठा। निवेदन करते हुए कहा - "गुरुदेव ! आपका तो हमारे ऊपर अनन्त उपकार है। अविनय आशातना तो हम बालकों से होती रही है, क्षमायाचना तो हम शिष्यों को करनी चाहिए।” इसी दिन लगभग ९ बजे सभी संत गुरुचरण-छाया में बैठे थे । वार्ता प्रसंग में पूछा-"भगवन् ! कुछ इच्छा हो तो फरमायें ।” उस अनासक्त योगी ने यही फरमाया-“समाधि लग रही है, आनन्द है, अब कांइ इच्छा है ? (अर्थात् कुछ नहीं) मेरे पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री शोभाचन्दजी म.सा.का जन्म जोधपुर में हुआ और स्वर्गवास भी जोधपुर में ही हुआ। मेरे इस शरीर का जन्म पीपाड़ में हुआ।" यह कह कर अपनी बात समाप्त की। ___जब देखा, आगे नहीं फरमा रहे हैं तो सन्तों ने सहज जिज्ञासा एवं उत्सुकता से अति विनीत स्वरों में पूछा-"भगवन् ! आपकी अभिलाषा पीपाड़ पधारने की हो तो वैसा ही करेंगे।" प्रत्युत्तर में उस प्रज्ञापुरुष महामनीषी ने स्नेहसुधासिक्त सस्मित मुस्कान के साथ सहज, सरल, शान्त, गम्भीर एवं दृढ़ स्वर में छोटा सा उत्तर दिया- भाई! पीपाड़ गाँव निमाज ठिकाने में ही आता है।" गुरुदेव का यह संकेत तात्पर्यबोध के लिये पर्याप्त था।
गत तीन दिनों से औषधि-सेवन बिल्कुल बन्द था। आहार भी सन्तों के अत्याग्रह पर अत्यन्त अल्प । इसी बीच लगभग ४ बजे डॉ. एस. आर. मेहता दर्शनार्थ एवं स्वास्थ्य की पृच्छा हेतु पहुँचे। डॉ. मेहता सा. ने सानुरोध निवेदन किया-“गुरुदेव ! स्वास्थ्य के लिए दवा और खुराक की महती आवश्यकता है।"गुरुदेव ने फरमाया-“अब खाने की रुचि नहीं है और दवा लेने की इच्छा नहीं है। शरीर कुछ मांगता नहीं।” डॉक्टर सा. के परामर्श एव संतों के अत्यन्त भावप्रवण निवेदन पर उस अकारण करुणाकर महर्षि ने दो दिन के लिए दवा लेना स्वीकार किया। दूसरे | दिन १५ मार्च ९१ को गुरुदेव के सुस्ती रही, पर जप का वही क्रम चलता रहा। प्रातःकाल पहले दिन की बात के सन्दर्भ में सन्तों ने निवेदन किया-“भगवन् ! आपने दो दिन ही दवा सेवन का निर्णय क्यों लिया ?" प्रत्युत्तर में उन अप्रमत्त योगी ने फरमाया-"मैं कहीं खाली हाथ न चला जाऊँ, इसीलिये सावधानी रखने का परीक्षण कर रहा हूँ।" सुनने वाले अवाक् थे, क्या गजब की सजगता और जागरूकता ! इसके बाद उस दिन गुरुदेव किसी से भी कुछ नहीं बोले । पूज्य गुरुदेव ने अन्नाहार बंद सा कर दिया। प्रायः पेय पदार्थ ही लेते। किसे पता था कि पूज्य गुरुदेव अब अन्नाहार कभी नहीं करेंगे। सन्त-जन तो यही सोच रहे थे कि अन्नाहार स्वास्थ्य की दृष्टि से बंद किया | है और स्वस्थ होने पर पूज्यवर अन्नाहार अवश्य ही करेंगे।
दिनांक १६ मार्च ९१ को दिन भर पूज्य गुरुदेव के सुस्ती रही, वे किसी से भी कुछ नहीं बोले । हल्का सा बुखार भी था, जो तेज होते -होते १०४ डिग्री तक जा पहुँचा। पूज्य आचार्य गुरुदेव की इस शारीरिक स्थिति से सभी अत्यन्त व्यग्र एवं चिन्तित थे। सभी के मन में एक ही खयाल था-आचार्य भगवन्त ! कैसे भी स्वस्थ हों व आरोग्य लाभ प्राप्त करें। आवश्यक उपचार के पश्चात् अपराह्न तीन बजे लगभग ज्वर कम हुआ। सभी ने संतोष की सांस ली। इसी बीच अचानक लगभग ५ बजे पूज्य गुरुवर के शरीर में भयंकर कम्पन्न हुआ। स्थानीय सेवाभावी चिकित्सक डॉ. राकेश शर्मा ने निरीक्षण कर बताया कि मस्तिष्क में रक्त संचार अवरुद्ध होने से शारीरिक स्थिति ऐसी हो गई है। थोड़ी देर बाद तीन बार वमन होने से शरीर में कमजोरी आ गई।
___ संतजन चिन्तित थे। योगीराज हस्ती तो कर-कमल में माला लिये निरन्तर जप में लीन थे। कैसी विलक्षण सहिष्णुता,कैसी अदृष्टपूर्व समता, जैसे कुछ हुआ ही न हो। पूज्य गुरुदेव की इस सहनशीलता से सब सन्त