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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं २८० अवसर पर संघ की ओर से श्री गुलराज जी अब्बाणी, जोधपुर श्री बाबूलालजी नाहर, बरेली एवं श्री हीरालालजी चौपड़ा, पाली आदि संघ-सेवी व साधक श्रावकों का बहुमान किया गया। साथ ही श्री जम्बूकुमारजी जैन, जयपुर, डॉ. रामगोपाल जी, सुश्री आशा बिडला, श्री अमरसिंह जी शेखावत, श्री उगमराजजी मेहता व श्री झूमरमलजी बाघमार आदि का उनकी महनीय सेवाओं के लिये सम्मान किया गया। २९ अप्रेल को बालशोभागृह के ३० छात्र, शोभागुरु के शिष्य जन-जन के नाथ आचार्य हस्ती के पावन दर्शन कर सौभाग्यशाली बने । माता-पिता के दुलार व संरक्षण से वंचित इन बालकों को आपश्री ने आशीर्वाद प्रदान करते हुए हित शिक्षा दी व जीवन निर्माणकारी संकल्प कराए। 'सम्बल' संस्था की ३९ बहिनों ने पूज्यपाद के पावन दर्शन व उनकी प्रेरणा से धर्म का सम्बल स्वीकार कर कई नियम अंगीकार किये।
भगवन्त के निमाज की हवेली (महावीर भवन) पधारने पर क्रियाभवन से ८१ वर्षीय मन्दिरमार्गी संत श्री नयरत्नविजय जी म. दर्शनार्थ पधारे । तप:संयम से दीप्त, ज्ञान ज्योति से आलोकित, स्नेह, सौहार्द व करुणा के सागर आचार्य हस्ती के दर्शन कर उन्होंने भावाभिभूत हो अपने उद्गार व्यक्त किये - “आज मेरा जन्म सफल हो गया।" आचार्य श्री शोभाचन्द्रजी म.सा. के पाट पर विराजित आप श्री भी उन महापुरुष के समान ही पूज्य हैं। मुझे ऐसा मंगल पाठ सुनाओ कि मेरा अन्तिम समय ज्ञान-दर्शन-चारित्र की निर्मल आराधना में बीते, यही प्रार्थना है । आचार्य भगवन्त से मांगलिक श्रवण कर वे परितृप्त हो, अपने स्थान को पधार गये। कितना विराट् व्यक्तित्व था चरितनायक संयम-सुमेरु आचार्य हस्ती का। इन युग प्रभावक आचार्य-प्रवर का अन्य सम्प्रदायों के सन्तों के हृदय में भी कितना उच्च आदर युक्त एवं श्रद्धास्पद स्थान था, इसका सहज अनुमान वयोवृद्ध मुनि श्री के इन उद्गारों से लगाया जा सकता है। वस्तुत: गुरुदेव ऐसे दिव्य दिवाकर थे जिसकी ज्ञान किरणों से समूचा जैन संघ प्रकाशित हुआ, वे जिनवाणी का सुधा रस बरसाने वाले ऐसे महामेघ थे जिसके प्रवचन-पीयूष की वर्षा व पावन प्रेरणा से जैन ही नहीं जैनेतर भी जीवन निर्माण की ओर अग्रसर हुए। वे संतप्त प्राणिमात्र के लिये शीतल समीर थे, जिसके सान्निध्य से हर कोई अपना दुःख भुला कर अनिर्वचनीय शान्ति का अनुभव करता था। ____ ज्येष्ठ कृष्णा ६ को परम्परा के मूलपुरुष पूज्य श्री कुशलो जी म.सा. की पुण्य तिथि पर सिंहपोल स्थानक में करुणानाथ के सान्निध्य में धर्माराधन का ठाट रहा, भक्तों ने अनेक व्रत-प्रत्याख्यान कर अपने जीवन को भावित किया। सुश्रावक श्री धींगड़मल जी गिड़िया की प्रार्थना स्वीकार कर आप सन्त-मण्डली के साथ १८ मई १९९० को रायपुर हवेली स्थानक में विराजे। इसके अनन्तर घोड़ों का चौक, सरदारपुरा कोठारी भवन, कमला नेहरू नगर, प्रतापनगर, चौपासनी हाउसिंग बोर्ड, देवनगर, शास्त्रीनगर आदि उपनगरों में जिनवाणी का शंखनाद करते हुए पूज्यपाद २ जून को महावीर भवन, नेहरू पार्क पधारे।
यहाँ दिनांक ७ जून ज्येष्ठ शुक्ला चतुर्दशी को पूज्यपाद के सान्निध्य में जिनशासन प्रभावक क्रियोद्धारक आचार्य पूज्य श्री रत्नचन्दजी म.सा. का १४५ वाँ स्मृति दिवस व्रत-प्रत्याख्यान तप-त्याग के साथ मनाया गया। जनसमुदाय की विशाल उपस्थिति, सामूहिक सामायिक-साधना व दया-संवर की आराधना से समवसरण सुशोभित था। आबाल वृद्ध श्रावक-श्राविका सभी में प्रबल उत्साह था। आस-पास के अनेक क्षेत्रों के प्रतिनिधि पूज्यपाद के सान्निध्य व दर्शनलाभ हेतु उपस्थित थे। जिनमें पाली संघ प्रमुख था।
यहाँ से ८ जून को विहार कर पूज्यप्रवर पी. डब्ल्यू. डी. कालोनी, न्यू पावर हाउस रोड़ फरसते हुए १० जून को मधुवन कॉलोनी पधारे। जोधपुर के विभिन्न छोटे बड़े उपनगरों को फरसते देख लोग आश्चर्याभिभूत थे कि