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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
संघशास्ता आचार्य का धर्म बडा कठोर है। शासन की अग्लान भाव से सेवा करने वाले संघनायक को भी संघहित व धर्म - शासन के अनुशासन को सुनिश्चित करने हेतु कई बार अप्रिय निर्णय भी लेने होते हैं । इनमें भी उनका एक मात्र लक्ष्य जिन-शासन की सुरक्षा व आचार - प्रधान धर्म प्रभावना का ही होता है । संघहित व शासन- सुरक्षा का प्रश्न खड़ा होने पर न तो वे किसी व्यक्ति, क्षेत्र या परिवार के राग से बंधे होते हैं, न ही किसी व्यक्ति के प्रति द्वेष ही उनके मन में होता है। शिष्य परिवार की कल्याण कामना व उनके जीवन-निर्माण की भावना से आचार्य निष्पक्ष होकर सारणा- वारणा करते हुये उन्हें आवश्यक दिशा बोध, निर्देश, शिक्षा व आज्ञा भी प्रदान करते है। आचार्य का धर्म होता है 'वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि उनकी आज्ञा विनीत शिष्य के लिये औषधि के | समान सदैव हितकारिणी व शिरोधार्य होती है, किन्तु हित- मित-पथ्य शिक्षा भी शिष्य द्वारा ग्राह्य न होने पर आचार्य को कठोर दृढ निर्णय लेकर उसे संघ से बहिष्कृत भी करना पड़ता है। ऐसा ही श्री शीतल मुनि जी व श्री धन्नामुनि जी के संदर्भ में हुआ। महती कृपा कर सुधार का एक और अवसर प्रदान करते हुए करुणहृदय दयानिधान गुरुदेव ने | उनके लिए बूँदी चातुर्मास नियत करते समय उन्हें साधना वर्ष के रूप में समय देते हुए उनके आत्म-कल्याणार्थ, संयम- सुरक्षा व शासन हितार्थ कुछ नियमों के पालन का निर्देश दिया, पर 'गहना कर्मणो गतिः' - कर्मों का विपाक | देखिये कि उन्होंने प्राणिमात्र के प्रति करुणा, वात्सल्य व स्नेह सरसाने वाले गुरु भगवंत की आज्ञा, निर्देश व उनके द्वारा नियत किये गये नियमों का पालन न कर अपनी भावी दिशा स्वयं ही नियत कर ली। उनके साथ श्री धन्ना मुनि जी ने भी गुरु आज्ञा व संघ - मर्यादा का पालन नहीं किया । षट्कायप्रतिपालक पूज्यपाद को ऐसा भी लगा कि | उन दोनों को मेरी हित- मित-पथ्य आज्ञा निर्वहन में भी कष्ट होता है। इन सब परिस्थितियों को देखते हुये गुरु आज्ञा व संघ मर्यादा उल्लंघन के कारण पूज्यपाद संघशास्ता आचार्य भगवन्त ने उन दोनों को अपनी आज्ञा व रत्न- संत- मंडल से बहिष्कृत घोषित कर दिया ।
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पूज्यपाद के इस पीपाड़ प्रवास में धर्म-प्रभावना व व्रताराधन के अनेक कार्य सम्पन्न हुए । २१ जनवरी को | युवारत्न बन्धुओं ने श्री जैन रत्न युवक मंडल, पीपाड़ का गठन कर पूज्य गुरुदेव के सान्निध्य में सप्त व्यसन त्याग, | साप्ताहिक सामूहिक सामायिक व दैनिक १५ मिनट स्वाध्याय का संकल्प लेकर संगठन व धर्मनिष्ठा का सच्चा | स्वरूप प्रस्तुत किया । २४ जनवरी से प्रबुद्ध चिन्तक एवं ध्यान साधक श्री कन्हैयालालजी लोढा के संयोजन में सप्त दिवसीय ध्यान-साधना शिविर का आयोजन हुआ । २८ जनवरी माघ शुक्ला द्वितीया को युगमनीषी आचार्य भगवन्त का दीक्षा दिवस दया, उपवास, पौषध आदि विविध व्रतों के आराधन, तप-त्याग व प्रत्याख्यान के साथ मनाया गया ।
यहाँ ९ फरवरी १९९० माघ शुक्ला षष्ठी संवत् २०४६ को विरक्ता बहिन बाल ब्रह्मचारिणी सुश्री शशिकला (सुपुत्री श्रीमती उमरावकंवरजी व श्री पुखराजजी बाफना ) तथा बाल ब्रह्मचारिणी सुश्री बबीता (सुपुत्री श्रीमती पुष्पा | देवी एवं श्री मनोहर लालजी जैन) पूज्यपाद आचार्य भगवन्त के मुखारविन्द से श्रमणी दीक्षा अंगीकार कर प्रव्रज्या पथ पर अग्रसर हुई। बड़ी दीक्षा पीपा में सम्पन्न हुई। बड़ी दीक्षा अनन्तर नव दीक्षिता महासतीजी के नाम क्रमशः महासती श्री शशिकला व महासती श्री विनीत प्रभा जी रखे गये ।
संघ ने भावभीनी विनति श्रीचरणों में रखी - "भगवन् ! जोधपुर रत्नवंश के श्रावकों का पट्ट नगर है, पूज्या प्रवर्तिनी महासती जी म.सा. भी लम्बे समय से आपके दर्शन की उत्कंठा में हैं। स्वास्थ्य, चिकित्सा, शासन - प्रभावना आदि सभी दृष्टियों से जोधपुर का क्षेत्र अनुकूल है । रत्नवंश के सभी आचार्य भगवंतों, प्रभावक महापुरुषों एवं आप श्री स्वयं की कृपादृष्टि सदा हम पर रही है। भगवन् ! अब तो आपके पदार्पण, क्षेत्र - स्पर्शन व स्थिरवास का लाभ हमें ही मिलना चाहिये।” पीपाड़वासी भक्त अपनी बात पर अड़े थे कि भगवन् ! स्वास्थ्य अनुकूल नहीं है, इस