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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड २७५ • कोसाणा चातुर्मास (संवत् २०४६) ___ इन्दावड़ से गगराणा, पुरलू, खवासपुरा, चौकड़ी कलां, नारायणजी चौधरी की ढाणी आदि मार्गस्थ गांवों को अपनी पदरज से पावन करते हुए चरितनायक पूज्य आचार्य हस्ती ने उल्लसित भक्तों द्वारा 'जैन धर्म की जय', 'श्रमण भगवान महावीर स्वामी की जय' 'आचार्य हस्ती की जय, 'निर्ग्रन्थ गुरुदेवों की जय' 'अहिंसा परमो धर्म की जय' के जयनादों के साथ १३ जुलाई १९८९ आषाढ शुक्ला १० गुरुवार को संवत् २०४६ के चातुर्मासार्थ कोसाणा के धर्मस्थानक में शिष्य समुदाय के साथ पदार्पण किया। पूज्यपाद के चातुर्मास से गांव का चप्पा-चप्पा पुलकित था व बच्चा-बच्चा हर्षित था। धर्म सभा में चौधरी , वनमाली, विश्नोई, ब्राह्मण, सुथार, सोनी, राजपूत व महाजन, हर जाति के लोग उपस्थित हो, आपके मंगलमय दर्शन व पावन प्रवचनामृत से कृतकृत्य हो रहे थे। उपस्थिति को देखकर ऐसा लग रहा था कि सारा गाँव ही पतितपावन गुरुदेव एवं सन्तों के पावन दर्शन हेतु उमड़ आया हो। हर्ष विभोर संघ-मंत्री श्री घीसूलालजी बागमार एवं श्री जवाहर लाल जी बागमार ने समग्र ग्रामवासियों की श्रद्धा व समर्पण का इजहार करते हुए स्वागत वचन व गीतिका प्रस्तुत की। मंगल-प्रवेश के इस अवसर पर कृपानाथ ने निर्माणकारी प्रेरणा देते हुये फरमाया –“ कोसाणा छोटा सा गाँव है और परमप्रतापी आचार्य श्री रत्नचन्द्रजी म.सा. का कृपा पात्र क्षेत्र रहा है। यहाँ पर हमारा यह दूसरा चातुर्मास केवल महाजनों को देखकर नहीं वरन् सारे अहिंसक समाज को ध्यान में रखकर हुआ है। अहिंसक समाज में यहाँ वनमाली, विश्नोई और चौधरी मुख्य हैं। इनका अहिंसा के प्रति अच्छा आदर भाव है।” व्यसन मुक्ति का सन्देश देते हुए आपने फरमाया - "ग्रामवासी ऐसा वातावरण तैयार करें, जिससे यह गाँव व्यसन-मुक्त बन सके।" आपने समस्त ग्रामवासियों को मिलकर प्रेम से रहने, पीड़ित एवं असहाय भाइयों की सेवा करने, पशुओं के प्रति दया भाव रखने, पर्वतिथियों पर पशुओं से काम न लेने, कम से कम श्रावण एवं भाद्रपद माह में रात्रि भोजन का त्याग करने व सन्त-समागम का लाभ उठाने की प्रभावी प्रेरणा की। चातुर्मास में आपके विद्वान् शिष्य पं. रत्न श्री हीरामुनिजी म.सा. (वर्तमान आचार्यप्रवर) ने अपनी सरल सहज सुबोध शैली में व्यसन-मुक्ति की प्रभावी प्रेरणा की। जैन रामायण के माध्यम से मर्यादा पुरुषोत्तम शलाका पुरुष श्री राम के जीवनादर्शों का निरूपण करते हुए आपने ग्रामवासियों को मातृपितृ-भक्ति तथा आदर्श घर, समाज व राज्य कैसा हो, पर अपनी प्रभावी प्रेरणा की। आपके मार्मिक उद्बोधन से कई भाइयों ने अमल, बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू सेवन, शराब आदि दुर्व्यसनों का त्याग किया। कोसाणा ग्राम में आचार्य भगवन्त के मंगल-प्रवेश के साथ ही भाइयों एवं बहनों में तपस्या की होड़ सी लग गई। श्री झूमरमलजी बाघमार, श्री रेखचन्दजी बाघमार की धर्मपत्नी, श्री सम्पतमल जी बोथरा की धर्मपत्नी आदि ने तपस्या में कदम बढ़ाये । १७ जुलाई को जैनेतर भाइयों ने एकाशन व्रत की आराधना कर सम्पूर्ण दिवस धर्माराधना में बिताया। श्रावणी अमावस्या को विश्नोई, ब्राह्मण, माली, राजपूत, बढई, चौधरी एवं सोनी जाति के भाइयों ने दयाव्रत का आराधन किया। मालावास के श्री जीवनसिंह जी राजपूत एवं उनकी पत्नी ने अठाई तप किया। कोसाणा निवासी अमरारामजी विश्नोई ने १२ दिवसीय तप एवं श्री अखेराजजी बाघमार ने मासखमण तप किया। श्री सायरचन्दजी बाघमार, श्री विमलचन्दजी डागा जयपुर आदि श्रावकों ने सदार शीलव्रत के नियम लिए। श्रद्धालुओं का विभिन्न स्थानों से आवागमन बना रहा। कई श्रावक-श्राविकाओं ने आपके सान्निध्य में श्रावक के बारह व्रतों का स्वरूप समझ कर अपने जीवन को मर्यादा में स्थिर किया। कोसाणा चातुर्मास अवधि में १२ से १४ अगस्त तक त्रिदिवसीय साधना-शिविर का आयोजन किया गया।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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