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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
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तीन महापुरुषों का स्मरण
१० फरवरी को ठाणा ८ से महावीर मिशन अस्पताल पधारे। यह बसन्तपंचमी का दिन था । आचार्य देव ने अपने प्रवचन में फरमाया – “ आपने १०१ शीलव्रत आदि से धर्म की महती प्रभावना की । आज बसन्तपंचमी (माघ | शुक्ला पंचमी) पर पुन: इस नगर के उपान्त्य भाग में एक नई लहर प्राचीन महापुरुषों के जन्म, दीक्षा एवं पुण्य स्मृति | के रूप में उपस्थित है । आज भूधरवंश के आचार्य श्री रघुनाथजी महाराज की २७९ वीं जन्म तिथि है, स्वामीजी श्री पन्नालालजी म.सा. की पुण्यतिथि है तथा गुरुदेव आचार्य श्री शोभाचन्द्रजी म.सा. का दीक्षा-दिवस पर हमें चाहिए कि तीनों महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा प्राप्त करें ।”
। इस अवसर
“आचार्य श्री रघुनाथजी महाराज भूधरवंश के मुख्य आचार्य थे । तेरापंथ सम्प्रदाय के प्रथम आचार्य श्री भिक्खुस्वामीजी श्री रघुनाथजी महाराज के ही शिष्य थे। आप बड़े त्यागी, वैरागी एवं प्रभावशाली आचार्य थे । | मरुधरा में आचार्य श्री का बड़ा उपकार रहा है। दूसरे महापुरुष स्वामीजी श्री पन्नालालजी महाराज ने जिनशासन की | स्थायी रक्षा के लिये स्वाध्याय संघ की स्थापना कर जैन समाज पर बड़ा उपकार किया है। तीसरे महनीय महापुरुष | आचार्य श्री शोभाचन्द्रजी म.सा. हैं, जो हमारे धर्माचार्य एवं धर्मगुरु थे । आप बड़े ही शान्त, दान्त, गम्भीर एवं | लोकप्रिय सन्त थे । समभाव की साक्षात् मूर्ति थे ।
तीनों महापुरुषों के गुणस्मरण के प्रसंग पर आप कम से कम पाँच-पाँच सामायिक के साथ शीलव्रत की आराधना कर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करें।
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बूँदी, देवली, दूनी होकर टोंक
यहाँ से ११ फरवरी को विहार कर बडगांव, वल्लोप, तालेड़ा आदि को अपने पाद विहार से पावन करते हुए पूज्यपाद बून्दी पधारे। बैठक में घाव हो जाने से आपश्री का यहाँ कई दिन विराजना हुआ। आपके दर्शनार्थ एवं सुखसाता पृच्छा हेतु अनेक क्षेत्रों के श्रावकों का आवागमन बना रहा।
आपकी दैनन्दिनी से ज्ञात होता है कि ६ मार्च १९८९ को आपको ऐसा आभास हुआ कि अब यह जीवन | सीमित है । प्रतिपल सजग, अप्रमत्त योगी पूज्य आचार्यप्रवर यद्यपि निस्पृह साधक थे, तथापि संघ व्यवस्था आपके | पूज्यपाद गुरुदेव द्वारा दिया गया उत्तरदायित्व था । आपका चिन्तन चला कि अब मुझे भावी संघ - व्यवस्था का चिन्तन कर शनै- शनै संघ-संचालन से विराम ले लेना है व पूर्ण समय हर क्षण आत्म-भाव में ही लीन रहना है। दैनन्दिनी से | ऐसा भी ज्ञात होता है कि सन्तों में से एक को आचार्य व एक को उपाध्याय बनाने की इसी समय में आपके मन में स्फुरणा हुई। शिष्य मंडल को आपने त्याग, तप एवं ज्ञानाराधन का बन्धुभाव से लाभ लेने एवं कर्तव्य निर्वहन में संघ की शोभा बढ़े, यह प्रेरणा दी । श्रावक समाज को भी प्रेम, संगठन व अनुशासन की प्रेरणा दी । परस्पर सहयोग, एक-दूसरे को आगे बढ़ाने की भावना संघ विकास का सूत्र है, यह चिन्तन निरन्तर चलता रहा । ७ मार्च को समागत भक्तों व कार्य कर्ताओं को मार्गदर्शन देते हुए आराध्य गुरुदेव ने हृदयस्पर्शी विचार रखते हुए फरमाया - "जलता हुआ दीप अपने पास आने वाले दीप को आलोकित कर देता है, तो क्या मानव अपने पुरुषार्थ से अपने साथियों को प्रमुदित विकसित नहीं कर सकता ? अच्छा बीज मिट्टी में गिर कर भी नये वृक्षों को खड़ा कर देता है, फिर मानव अपने सम्पर्क में आये निर्बल को क्या ऊपर नहीं उठा सकता है।”
९ मार्च को बून्दी से २ किलोमीटर का विहार कर आप ठंडी बावड़ी प्राकृतिक चिकित्सालय पधारे, जहाँ श्री