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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
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अरिहन्त पेपर मिल्स, भण्डारी केबल्स, बडेर जी की फैक्ट्री (चाकस) आदि के प्राङ्गणों में भी धर्म संस्कारों व उदात्त ।। जीवन मूल्यों की प्रेरणा की। ___विहार-काल में २९ जून ८८ को कौथून ग्राम में दिन व रात्रि में मेघ वर्षा होती रही। जिस तिबारे में गुरुदेव ।। अपनी सन्तमण्डली के साथ ठहरे थे, वह भी ऊपर से चूने लगा। सन्तों ने बैठे-बैठे रात निकाली। गुन्सी, मुण्डिया , चैनपुरा होते हुए आप निवाई धर्मशाला में विराजे। यहां सवाई माधोपुर क्षेत्र के पचासों भाई दर्शनार्थ आए। यहाँ से पाद-विहार में लगभग १५ भक्त साथ हो गए। निवाई से रेल की पटरी के साथ वाली पगडंडी से विहार में कांटे एवं कंकर थे, किन्तु आत्मबली परीषह विजेता महापुरुष के लिये ये साधक जीवन में आने वाले सहज परीषह थे। दैहिक कोमलता व सुखाभिलाषा त्यागने वाले दृढ आत्मबली महापुरुष ही मोक्षमार्ग का आरोहण कर सकते हैं। नलागाँव में जाट ग्रामीणों को बीड़ी, सिगरेट आदि धूम्रपान का प्रत्याख्यान करा कर उन्हें व्यसन मुक्त करते हुए पूज्यपाद सिरस में महादेवजी के मन्दिर में विराजकर गाँव में पधारे। यहां दिगम्बर जैन भाई श्री रतनलालजी अग्रवाल की सेवा-भक्ति सराहनीय रही। शिवाड़ , ईसरदा होकर आपने बनासनदी का पुल भी पटरी के रास्ते से पार किया। थोड़ी जगह होने से इस पुल को पार करना अत्यन्त कठिन है। अनेक बार यहाँ दुर्घटनाएँ भी हुई हैं। वर्षा का भी जोर था, किन्तु मार्ग की कठिनाइयों की परवाह न करते हुए पूज्य गुरुदेव सवाई माधोपुर की ओर बढ़ते रहे। कठिनाइयां व बाधाएं आत्मविजेता महापुरुषों का पथ कब अवरुद्ध कर पाई हैं। सुरेली ग्राम, चौथ का बरवाड़ा, एकड़ा चौकी, देवपुरा को फरसते हुए धमूण चौकी में रेलवे क्वार्टर में रुककर पूज्यप्रवर १५ जुलाई ८८ को बजरिया पधारे। • सवाई माधोपुर चातुर्मास (संवत् २०४५)
विक्रम संवत् २०४५ सन् १९८८ में आपके ६८वें चातुर्मास का सौभाग्य सवाईमाधोपुर को प्राप्त हुआ। आचार्य श्री ने जयनाद करते सैंकडों श्रद्धालुओं के साथ २० जुलाई ८८ आषाढ शुक्ला ६ को महावीर भवन में मंगल प्रवेश किया । प्रवेश के समय चार सन्तों के बेले की तपस्या थी। सवाईमाधोपुर में १४ वर्षों के पश्चात् आपका यह द्वितीय चातुर्मास था, जिसमें अतीव प्रबल उत्साह देखा गया। महावीर भवन में धर्माराधन का ठाट लग गया। महासती श्री सुशीला कंवर जी म.सा. आदि ठाणा ६ के चातुर्मास का भी इस नगर को सुयोग मिला, जिससे महिलाओं के ज्ञानार्जन एवं धर्माराधन को बल मिला। ५० युवकों ने यथाशक्ति एक माह, दो माह एवं पूरे चातुर्मास काल में ब्रह्मचर्य पालन का नियम तथा दो माह एवं चार माह तक रात्रिकालीन संवर-साधना का संकल्प ग्रहण कर संयमधनी रत्नत्रयाराधक गुरु भगवंतो का सच्चा स्वागत अभिनन्दन किया। चातुर्मास में मासखमण सहित दीर्घ तपस्याएँ, प्रतिदिन लगभग एक हजार सामायिकें, अखंड नवकार मंत्र का जाप, युवकों द्वारा धार्मिक अध्ययन आदि कार्यक्रम विशेष आकर्षक रहे। स्थानक के पास रहने वाले सिक्ख सरदारजी ने मांस का त्याग किया तथा उन्होंने संत-समागम प्रवचन-श्रवण व धर्म-साधना का नियमित लाभ लिया। जैनेतर बहिन श्रीमती दुर्गा पटवा ने अठाई तप व राठौड़ समाज की एक बहिन ने तेले की तपस्या की। सजोड़े आजीवन शीलव्रत के पांच प्रत्याख्यान हुए। श्री सुकनराजजी गुगलिया, हैदराबाद ने वर्ष मे १२ पौषध का नियम लिया। श्री हंसराजजी जैन एण्डवा बजरिया ने ६१ दिवसीय मौन साधना कर जप, तप व मौन साधक गुरुदेव के प्रति अपनी श्रद्धा का क्रियात्मक रूप प्रस्तुत किया।
___अपराह्न में आचार्य श्री प्रतिदिन साधु-साध्वियों के लिये विशेषावश्यक भाष्य की वाचना करते थे। महासती मण्डल के सान्निध्य में महिलाओं में धार्मिक शिक्षण चलता तथा सन्तों के सान्निध्य में स्वाध्यायरत अनेक युवक स्वाध्यायी बने । परम गुरुभक्त एवं प्रज्ञाशील श्री नथमलजी हीरावत जयपुर ने युवकों को स्वाध्याय हेतु विशेष प्रेरणा