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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं २६६ साधक श्रावकों ने पूज्यपाद से कुछ अतिरिक्त नियम भी अंगीकार किये - १. प्रतिदिन कम से कम नवकारसी अवश्य करना। २. रात्रि भोजन नहीं करना व रात्रि में चौविहार त्याग का प्रयास करना। ३. भोजन में जूठा नहीं छोड़ना। ४. प्रतिदिन बड़ा स्नान नहीं करना। इस अवसर पर देश के कोने-कोने से आगत कई श्रावकों ने सामायिक स्वाध्याय के नियम ग्रहण किये। श्री प्रेमचन्द जी जैन, रशीदपुर ने आजीवन शीलवत अंगीकार कर अपना जीवन शील सौरभ से सुरभित किया। आश्विन शुक्ला दशमी को तपोधनी आचार्य श्री भूधर जी म. सा. का जन्म व पुण्य तिथि महोत्सव तथा आश्विन शुक्ला एकादशी को धर्मप्राण आचार्य श्री धर्मदास जी म.सा. की दीक्षा जयन्ती तपत्याग पूर्वक मनाई गई। इस अवसर पर श्री गुलाबचंदजी संचेती, अलवर ने सजोड़े आजीवन शीलवत ग्रहण किया। जयपुर से आये गुरुभक्त संघनिष्ठ कई श्रावकों ने महीने में दो दिन दया संवर करने का संकल्प किया। परमपूज्य गुरुदेव सदैव द्रव्य-निक्षेप की अपेक्षा भाव-निक्षेप को ही महत्त्व देते थे। स्थानकवासी परम्परा में देव के निराकार स्वरूप व गुरु के गुणों का ही महत्त्व व प्रतिष्ठा है। एकदा स्थण्डिल हेतु पधारते समय एक भाई द्वारा अनायास आपका फोटो खींचे जाने पर आपने उसे कड़े शब्दों में उपालम्भ देते हुए फरमाया – “सन्तों की फोटो खींचना श्रमणाचार के अनुकूल नहीं है। चोरी छिपे जो श्रावक फोटो खींच कर उसका प्रचार करते हैं, वे परम्परा का उल्लंघन करते हैं। ऐसा कार्य स्थानकवासी परम्परा के विरुद्ध व शास्त्र-मर्यादा के अनुसार निषिद्ध है। " लाखन कोटड़ी स्थानक में आचार्यप्रवर का पदार्पण यदा-कदा होता। व्याख्यान आदि धर्म प्रभावना के | दायित्व का कुशलतापूर्वक निर्वहन पं. रत्न श्री शुभेन्द्रमुनिजी म.सा. करते थे। कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा ५ नवम्बर १९८७ को चातुर्मास की पूर्णाहुति व लोकाशाह जयन्ती के अवसर पर प्रवचन में विशाल जनमेदिनी की उपस्थिति में सम्वत्सरी पर्व सा ठाट दृष्टिगत हो रहा था। इस प्रकार सामायिक स्वाध्याय के उद्घोष व तप-त्याग के अपूर्व ठाट के साथ यह चातुर्मास सम्पन्न करने के अनन्तर पूज्य चरितनायक ने हजारों श्रावक-श्राविकाओं के बीच विहार किया। उल्लसित भक्तों द्वारा जय-जयकार के नारों से गगन-मंडल गूंज उठा। लाखनकोटड़ी से विहार कर पूज्यप्रवर श्री मोहनलालजी लोढा के बंगले पधारे । यहाँ श्री पूनमचन्द जी चोपड़ा ने आजीवन शीलवत अंगीकार कर अपना जीवन शील-सौरभ से सुरभित किया, कई भाइयों ने एक वर्ष तक शील पालन का संकल्प किया। बैक कालोनी में महासती श्री प्रेमकंवर जी म.सा. ठाणा ३ ने पूज्यपाद के दर्शन व सेवा का लाभ लिया। • किशनगढ में पार्श्वनाथ जयन्ती मार्गस्थ ग्रामों को अपनी चरणरज से पावन करते हुए करुणानाथ मदनगंज के उपनगर शिवाजी नगर में श्री बंसीलालजी कोचेटा के बंगले पर विराजे । तीन दिन तक यहां धर्मोद्योत करने के अनन्तर आपका पदार्पण मदनगंज | हुआ। यहां से आप किशनगढ शहर पधारे। यहाँ पौष कृष्णा दशमी को परम पूज्य गुरुदेव के पावन सान्निध्य में पार्श्वनाथ जयन्ती जप, तप व संवर साधना
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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