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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड २६३ में भक्तजन नियमित अवगाहन कर जीवन-निर्माण के सूत्र ग्रहण करते रहे। सरदारपुरा विराजते समय एक दिन पूज्यप्रवर ने अपने प्रवचनामृत में श्रावक की श्रेणियों का निरूपण करते हुए व्याख्यायित किया कि श्रावक तीन प्रकार के होते हैं - सरल, ग्राहक एवं दर्शक । दर्शक श्रावक के मन में मात्र दर्शन का भाव होता है। सरल श्रावक के मन में प्रवचन के प्रति श्रद्धा होने पर भी वह व्रताराधन नहीं कर पाता, पर ग्राहक श्रेणी के श्रावक में गुण ग्रहण करने एवं व्रत नियम अंगीकार करने का भाव होता है। यहां टांटोटी, विजयनगर आदि स्थानों के श्रावकों ने पूज्यपाद के दर्शन व प्रवचन-श्रवण का लाभ लिया। ३ मार्च १९८७ को आपकी आज्ञानुवर्तिनी महासती श्री इचरजकंवरजी म.सा. का ६९ वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया। महासती जी ने संवत् २०१८ पौष शुक्ला १२ को महासती श्री सुन्दरकंवरजी म.सा. की शिष्या के रूप में प्रव्रज्या पथ अंगीकार कर अपना जीवन सेवा, वैय्यावृत्य व साधना में सम्पन्न किया। महासतीजी ९ वर्षों से जोधपुर के पावटा स्थानक में स्थिरवास विराज रहे थे। पूज्यपाद के दर्शनार्थ विभिन्न सम्प्रदायों के संत-सतियों का आगमन बना रहा। कोठारी भवन में १० मार्च | १९८७ को आचार्य श्री विजयसूरीश्वरजी म.सा श्री नयरत्नजी म. के साथ पधारे। यहां श्री कान्तिसागर सूरिजी के शिष्यों ने भी पूज्यप्रवर के दर्शन किए। आचार्य श्री नानालालजी म.सा. की आज्ञानुवर्तिनी महासती श्री सुलक्षणा जी म.सा. आदि ठाणा ५ पूज्य चरितनायक के दर्शनार्थ पधारी। फाल्गुनी चतुर्दशी दिनांक १४ मार्च को भोपालगढ संघ महावीर जयन्ती एवं अक्षयतृतीया की विनति के साथ उपस्थित हुआ। अलीगढ-रामपुरा के शिष्ट मंडल ने श्री गोपाललालजी जैन वैद्य के नेतृत्व में सन्त-सतियों के चातुर्मास की विनति भगवन्त के चरण सरोजों में प्रस्तुत की। किशनगढ, जयपुर के श्रावकों द्वारा भी अपनी | विनतियां प्रस्तुत की गईं। १७ मार्च को अजमेर श्री संघ ने पूज्यपाद के आगामी चातुर्मास हेतु अपनी प्रबल आग्रहभरी विनति प्रस्तुत की। पूज्यप्रवर ने सामायिक, स्वाध्याय व शासनप्रभावना को प्राथमिकता देने का चिन्तन व्यक्त किया। कुछ दिन पावटा विराज कर पूज्य आचार्य देव रेनबो हाउस पधारे। आपके मंगल पदार्पण की खुशी में अनन्य भक्त डॉ. सम्पतसिंहजी भांडावत ने वर्ष में तीन माह का समय धर्माराधन व संघ-सेवा हेतु देने का संकल्प किया। उन्होंने सन्त-सती मंडल के विराजने हेतु रेनबो हाउस सदा खुला रखने की भी भावना व्यक्त की। सन्तों ने | त्रिषष्टिश्लाका पुरुषचरित का अध्ययन-वाचन किया। जैन स्कूल महामन्दिर में भी आपके प्रवचन-पीयूष का लाभ मिला। भोपालगढ की ओर विहार के क्रम में १ अप्रेल को आपका बनाड़ पदार्पण हुआ। बनाड़ से आप जाजीवाल फरसते हुए थबूकड़ा पधारे । यहाँ हरियाडाणा ग्राम के अध्यापक धर्म पिपासु श्री रामेश्वर जी ब्राह्मण ने करुणाकर गुरुदेव से धर्म का सही स्वरूप समझ कर सिगरेट | सेवन के त्याग एवं सामायिक साधना का संकल्प किया। कुछ अन्य व्यक्तियों ने भी आपके पावन सान्निध्य का लाभ लेते हुए धूम्रपान त्याग का नियम लिया। दईकड़ा में ग्रामीणजनों को अमल, बीड़ी, आदि व्यसनों से मुक्त कराते हुए पूज्यपाद छोटी सेवकी में विश्वकर्मा मन्दिर में विराजे। यहां से आप बुचेटी, कुड़ी में धर्मोद्योत करते हुए ९ अप्रेल | १९८७ को क्रियोद्धार भूमि भोपालगढ पधारे। ___ यहां नागौर, जयपुर, मेडता, बीकानेर, अलीगढ-रामपुरा, बजरिया, कोसाणा आदि संघ विनतियां लेकर उपस्थित हुए। अजमेर संघ के ५ अग्रगण्य श्रावकों ने पूज्यपाद का चातुर्मास होने पर ५१ स्वाध्यायी तैयार करने अथवा घृत
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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