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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं २६० | किया। समाज द्वारा उनका सम्मान कर त्यागानुमोदन किया गया। __ शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के अध्यक्ष सरदार काबुल सिंह तथा महासचिव ओंकार सिंह ने अहिंसा के पजारी आचार्य भगवन्त के मंगलमय पावन दर्शन कर उनसे पंजाब समस्या के समाधान हेतु मार्गदर्शन प्राप्त किया। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस (इ) के तत्कालीन अध्यक्ष श्री अशोकजी गहलोत एवं विदेश सचिव श्री रोमेशजी भण्डारी ने दर्शन एवं प्रवचन-लाभ लिया। ४ सितम्बर ८६ को २० वर्षीय युवक श्री कैलाश जी सिंघवी ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार किया। संघ द्वारा उनका एवं डॉ. नरेन्द्र जी भानावत का सम्मान किया गया । चातुर्मास में कुछ समय आप रीया विराजे। ___ यहाँ पधारने पर जोधपुर जिले के समस्त स्काउट विद्यार्थियों ने आचार्य श्री की अगवानी की। ५ से १२ | अक्टूबर तक स्वाध्यायी शिविर का आयोजन हुआ, जिसमें निकट एवं दूरवर्ती ११० स्वाध्यायियों ने भाग लिया। शिविरार्थियों के शैक्षणिक स्तर को देखते हुए पाठों को रटाने की अपेक्षा उनका जीवन में महत्त्व समझाने पर विशेष जोर दिया गया। सच्चे धर्म का स्वरूप, सच्चे सुख की पहचान, विषय-कषाय का स्वरूप आदि तथ्य स्पष्ट करने का प्रयास किया गया। शिविर में डा. सुषमाजी गांग एवं डॉ. चेतन प्रकाशजी पाटनी के विशेष व्याख्यान हुए। १० अक्टूबर को स्वाध्यायी शिविर स्वाध्यायी-सम्मेलन के रूप में परिवर्तित हो गया, जिसका उद्घाटन राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधिपति श्री जसराज जी चौपड़ा ने किया। श्री डी.आर. मेहता ने स्वाध्यायियों को अहिंसा और सेवा के क्षेत्र में व्यक्तिगत स्तर पर कार्य करने का उद्बोधन दिया। साधक श्री जौहरी मल जी पारख रावटी (जोधपुर) ने 'सुखी जीवन कैसे जीएँ?' विषय पर अपने मर्मस्पर्शी विचार प्रकट किए। स्वाध्यायी सम्मेलन का समापन १२ अक्टूबर को राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल महामहिम श्री वसन्तदादा पाटिल की गौरवपूर्ण उपस्थिति और न्यायाधिपति माननीय श्री गुमानमल जी लोढ़ा की अध्यक्षता में हुआ। इस अवसर पर अनेक स्वाध्यायी विद्ववृन्द का सम्मान किया गया। सभी स्वाध्यायियों ने आचार्य श्री के श्रीमुख से निम्नांकित नियम ग्रहण किए - (१) स्वाध्यायी आपस में एक दूसरे पर कोर्ट का मुकदमा नहीं लडेंगे। (२) प्रत्येक स्वाध्यायी सप्त कुव्यसन का त्यागी होगा। (३) शादी-विवाह के अवसर पर कन्दमूल का उपयोग नहीं करेंगे। (४) प्रत्येक स्वाध्यायी धार्मिक क्षेत्र में वर्षभर में हुई अपनी प्रगति का लेखा-जोखा रखेगा। (५) हर स्वाध्यायी कम से कम २० मिनट प्रतिदिन स्वाध्याय करके नया ज्ञान अर्जन करेगा। 'धर्म जीवन में कैसे उतारें' विषयक विद्वत्परिषद् की संगोष्ठी १२ से १४ अक्टूबर तक आयोजित हुई, जिसमें लगभग ४० विद्वानों ने भाग लिया। संगोष्ठी में डॉ. सागरमल जैन वाराणसी, श्री रणजीत सिंह जी कुम्भट जयपुर, डॉ. | महेन्द्र भानावत उदयपुर, श्री भंवरलाल जी कोठारी बीकानेर के भी व्याख्यान हुए। डॉ. इन्दरराज बैद की अध्यक्षता में एक कवि-गोष्ठी का आयोजन भी किया गया। १२ से १५ अक्टूबर ८६ तक सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल के अन्तर्गत संचालित साधना-विभाग की ओर से 'समभाव साधना-शिविर' आयोजित हुआ, जिसमें राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र के प्रतिनिधि साधकों ने भाग | लिया, जिनमें इन्दौर की ५ बहनें भी सम्मिलित थीं। शिविर में समभाव का अभ्यास किया गया। इस शिविर में १०
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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