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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं २४८ - सुधा में फरमाया . “ श्रवण-ग्रहण, धारण व आचरण में सर्वाधिक महत्त्व आचरण का है। धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में ढिलाई और आलस्य छोड़ उत्साह एवं दृढता से आगे बढना होगा, तभी समाज के स्तर पर स्वाध्याय की गतिविधियाँ आगे बढेंगी ।” चातुर्मास में समय-समय पर पूज्यपाद ने अपनी पीयूषपाविनी वाणी के माध्यम से जिनवाणी की पावन - सरिता | प्रवाहित करते हुए विविध विषयों पर अपने हृदयोद्बोधक विचार व्यक्त कर श्रोताओं को धर्म के सम्यक् स्वरूप का | बोध दिया, साथ ही जिनशासन प्रभावना व समाजोन्नति विषयक प्रेरणाएं भी की । श्रावण कृष्णा द्वितीया, रविवार को | प्रवचन सभा में भक्तगण विशाल संख्या में पूज्यपाद की पातक प्रक्षालिनी भवभयहारिणी जीवन निर्माणकारी वाणी | सुनने को उपस्थित थे । इस धर्मसभा में राजस्थान उच्च न्यायालय के पांच न्यायाधिपति व संभागीय आयुक्त भी उपस्थित हो आपका मार्गदर्शन पाने को उत्सुक थे । अन्याय, अनीति, व्यसन एवं कदाचार से सामान्य जन की रक्षा | राजनेता, न्यायाधिपति एवं धर्माचार्य के लक्ष्य की समानता का उल्लेख करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया - "राजनेता एवं | न्यायाधिपति दण्ड- व्यवस्था से पाप दबाने का कार्य करते हैं, जबकि धर्माचार्य पापी का मन बदल कर उसे पाप से सर्वथा अलग होने की प्रेरणा करते हैं ।” दीपावली के दिन प्रेम व स्नेह का दीपक ज्योतित करने की प्रेरणा देते आपने फरमाया - " स्वधर्मी भाई को अपने सगे भाई की भांति समझो। स्वधर्मी की कमी को फैलाओ मत, मिटाओ।" में भक्तों का पुरुषार्थ जगाते हुए आपने भाद्रपद शुक्ला द्वितीया को अपने मंगल प्रवचन में फरमाया- "साधना गुरु निमित्त होता है, किन्तु कर्म स्वयं को ही काटने होते हैं । " सम्वत्सरी महापर्व पर आपने आत्म-शोधन की | प्रेरणा तो दी ही, साथ इस अहिंसा पर्व पर नारी-वर्ग के प्रति सामाजिक हिंसा के प्रतीक दहेज-त्याग की प्रेरणा भी में की। परम पूज्य आचार्य भगवन्त पंचाचार व साधुमर्यादा की कठोरता से पालना के हिमायती थे । अपने स्वयं के जीवन में सकारण दोष भी आपको इष्ट नहीं था । श्रावण कृष्णा प्रतिपदा को श्रवणेन्द्रिय में फुंसी की सफाई हेतु टार्च से कान के अन्दर देखने को उद्यत डाक्टर पुरोहित को निषेध करते हुए आपने फरमाया- " आवश्यक हो तो आप धूप में देख सकते हैं। ” दोष सेवन से बचने को सजग एवं निज पर अनुशासन करने वाला महापुरुष ही संघ का शास्ता बन सकता है। एक सम्प्रदाय के आचार्य होते हुए भी पूज्यपाद के विराट् व्यक्तित्व से सभी धर्म-संघ प्रभावित थे । आपके सामायिक स्वाध्याय - सन्देश व शासन प्रभावना हेतु आपके प्रबल पुरुषार्थ, आपकी अप्रतिम प्रतिभा, साधनातिशय व प्रभावक व्यक्तित्व से सभी चमत्कृत थे। पर्युषण के पश्चात् निमाज की हवेली में विराजित श्रमण संघीय श्री रूपमुनि जी म.सा., श्री सुकनमुनिजी म.सा. सांवत्सरिक क्षमापना हेतु पधारे। भाद्रपद शुक्ला ८ को गांधी मैदान में विराजित | तेरापंथ संघ के आचार्य श्री तुलसी के विद्वान् शिष्य श्री महाप्रज्ञ भी क्षमापना हेतु पधारे। इसी दिन मूर्तिपूजक परम्परा की प्रभावक महासती जी श्री विचक्षण श्री जी की शिष्या महासती जी सुलोचना श्री जी आदि ठाणा ६ भी क्षमापना हेतु पधारी । चातुर्मास में कई विशिष्ट व्यक्तियों ने युगमनीषी आचार्य पूज्य हस्ती के पावन दर्शन कर उनसे मार्गदर्शन प्राप्त किया। प्रख्यात विद्वान प्रो. कल्याणमलजी लोढा आपसे अपने प्रश्नों का समाधान प्राप्त कर प्रमुदित हुए । २ अक्टूबर १९८४ को जोधपुर के सांसद व केन्द्रीय खेल उपमंत्री श्री अशोक जी गहलोत आपके पावन दर्शन व
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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