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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड २४५ | उपलक्ष्य में २१ पारणार्थी तपस्वी भाई-बहनों के पारणे हुए । १४ मई को वैशाख शुक्ला चतुर्दशी को आचार्य श्री जयमल म.सा. की १८८ वीं पुण्यतिथि पर लगभग २०० दयाव्रत हुए। चरितनायक ने आचार्यप्रवर श्री जयमलजी म.सा. के जीवन पर प्रकाश डालते हुए फरमाया कि जीवन के संग्राम में समता से विजयी बनना चाहिए। आचार्य श्री | जयमलजी म.सा. साहस और सत्पुरुषार्थ के धनी थे । पूज्य श्री कुशलचन्दजी म.सा. के साथ उनका अविचल सम्बन्ध रहा। श्री ज्ञानचन्दजी, श्री धनराजजी मुथा, श्री मांगीलाल जी प्रजापत आदि ने शीलव्रत अंगीकार कर कृपा निधान के चरणों में अपनी भेंट अर्पित की। भोपालगढ़ में कुशलचन्दजी म. का द्विशताब्दी पुण्यतिथि समारोह भोपालगढ़ में आचार्यप्रवर के सान्निध्य में राजस्थान उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधिपति | सुश्रावक श्री चांदमल जी लोढ़ा के मुख्य आतिथ्य में साधना-समारोह का समापन २० मई को त्याग- व्रत पूर्वक सम्पन्न हुआ, जिसमें श्री हीरामुनिजी, श्री ज्ञानमुनिजी, श्री पूज्य कुशलचन्द जी म.सा. के द्विशताब्दी पुण्य तिथि | गौतममुनिजी आदि सन्त- सती गण के अतिरिक्त सुश्री डॉ. सुषमा जी गांग (वर्तमान में श्रीमती सिंघवी), श्रीमती | सुशीला जी बोहरा, श्री दौलत रूपचन्द जी भण्डारी, श्री रतनलाल जी बैद, श्री छोटूराम जी प्रजापत आदि ने | कुशलचन्द जी म.सा. के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर सारगर्भित विचार प्रकट किए। श्री पूज्य श्री ३७ वर्ष आड़े आसन नहीं सोने वाले श्री कुशलचन्द जी म.सा. रत्नवंश | सेवा-भावना, अप्रमत्तता एवं उनका निश्छल समर्पण - भाव रत्नवंश का वैसे ही आधार रहा जैसे वृक्ष की शोभा का मूलपुरुष थे। उनकी साधना, आधार उसका मूल (जड़) होता है। इस अवसर पर उनकी स्मृति में श्री कुशल जैन छात्रावास की घोषणा हुई जो | उच्च शिक्षण के अभ्यासार्थी जैन छात्रों के लिए आज भी जोधपुर में संचालित है। महासाधक गुरुदेव के साधनामय सान्निध्य में आयोजित इस साधना समारोह के अवसर पर १२ दम्पतियों (श्री किशनलालजी, श्री सुगनचन्दजी ओस्तवाल, श्री सुगनचन्दजी, श्री दलीचन्दजी कांकरिया, श्री सायरचन्दजी खींवसरा, श्री चम्पालालजी | हुण्डीवाल, श्री शिम्भुलालजी चोरड़िया, श्री मांगीलालजी छीपा, श्री रामसुखजी पुठिया, श्रीलालजी सरगटा, | सांवतरामजी सुथार एवं श्री गंगारामजी गहलोत) ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का नियम लेकर इस अवसर पर आदर्श | प्रस्तुत किया। साधना कार्यक्रम तहत नवयुवकों में व्यसनमुक्ति अभियान चलाया गया, जिसके अन्तर्गत धूम्रपान, | चाय आदि व्यसनों का १७९ व्यक्तियों ने प्रत्याख्यान किया। भोपालगढ श्री संघ ने व्यसनमुक्ति कार्यक्रम के साथ २१ दिवसीय शान्तिपाठ एवं नवकार मंत्र जाप का आराधन किया। नई पीढ़ी के बालक-बालिका विनयशील, सदाचारी तथा जैन सिद्धान्तों के ज्ञाता बनकर भविष्य में सामाजिक उत्क्रान्ति, नैतिक जागृति और जिनशासन की प्रभावना में मूल्यवान योगदान दे सकें, इसी लक्ष्य से आचार्य श्री की प्रेरणा से २७ मई से १५ दिवसीय बाल शिविर का आयोजन हुआ, जिसमें १३१ शिविरार्थियों ने भाग लिया। इसका समापन समारोह श्री पृथ्वीराज जी कवाड़ मुख्य आतिथ्य में, श्री चम्पालाल जी कर्णावट मुम्बई की अध्यक्षता में और श्री केसरीचन्द जी नवलखा जयपुर के विशिष्ट आतिथ्य में सम्पन्न हुआ। शिविर की निम्नांकित विशेषताएँ रहीं मद्रास १. प्रतिदिन आचार्यप्रवर से मार्गदर्शन एवं तदनुसार क्रियान्विति । २. शिविरार्थियों को तिक्खुत्तो के पाठ का शुद्ध उच्चारण तथा विधि सहित गुरुवन्दन करने का अभ्यास । ३. पद्मासन लगाकर नमस्कार मंत्र का ध्यान करने का अभ्यास ।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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