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(प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
गौतम मुनि जी आदि ने अपनी भावांजलि व्यक्त की। पं. रत्न श्री हीरामुनि जी म.सा. (वर्तमान आचार्य प्रवर) ने अजमेर नगर को चतुर्विध संघ-मिलन का जंक्शन, मेला, तीर्थ और समवसरण बताते हुए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप रूप मार्गचतुष्टय की आराधना का अनूठा संगम-स्थल बताया और आराध्य आचार्य भगवन्त के चरणों में अधिकाधिक चतुरंगी साधना का संकल्प करने का आह्वान किया।
परमपूज्य आचार्य भगवन्त संत-मुनिराजों व भक्तों के द्वारा व्यक्त हृदयोद्गारों को अनमने भाव से श्रवण करते हुए आत्मोत्थान का ही चिन्तन कर रहे थे। अपने मंगल उद्बोधन में आपने फरमाया-“ गुण-ग्राम करने की अपेक्षा आप यदि व्रताराधन, तप-त्याग व प्रत्याख्यान अंगीकार करते हैं व जिनवाणी के पावन संदेश को जीवन में उतारने व जन-जन तक पहुँचाने का कार्य करते हैं तो यह आपके जीवनोत्थान व शासन प्रभावना का कारण होगा, यही आपकी सच्ची भेंट होगी।” प्रवर्तक श्री कुन्दनमलजी म.सा. के साथ पन्द्रह दिनों का सहवास बड़ा आनन्दप्रद एवं परिवार सा रहा। • मेड़ता होकर मारवाड़ भूमि में
___ श्रावकों द्वारा ‘गुरु हस्ती के दो फरमान सामायिक स्वाध्याय महान्' आदि उद्घोषों के बीच शिष्य-मंडली सहित आचार्य श्री ३० जनवरी १९८४ को पुष्कर पधारे। वहाँ धर्मोद्योत कर आप तिलोरा, थांवला, भैरुंदा, होते हुए हुए मेवड़ा पधारे। यहाँ श्री मोतीलालजी राजपूत एवं श्री भंवरलालजी छाजेड़ ने सपत्नीक आजीवन शीलव्रत का नियम लिया। बड़ीपादु में सामायिक संघ की शाखा स्थापित की गई। आप जहाँ कहीं भी पधारते, आपकी महनीय प्रेरणा से स्थानक में सामूहिक सामायिक करने वालों की संख्या बढ़ती गई। फिर छोटी पादु, सेसड़ा, जड़ाउ, चामुण्ड्या फरसते हुए आप मेड़ता पधारे ।
दक्षिण भारत की सुदूर पद-यात्रा के पश्चात् परम पूज्य आचार्य श्री का मारवाड़ में यह प्रवेश अनन्य आस्था एवं उमंग के वातावरण में सम्पन्न हुआ। अनेक क्षेत्रों के श्रावक-श्राविकाओं ने विनतियाँ प्रस्तुत की। इसी शंखला में जोधपुर श्री संघ की ओर से न्यायमूर्ति श्री श्रीकृष्णमल जी लोढा एवं आशुकवि स्वाध्यायी श्री दौलतरूपचन्दजी भण्डारी द्वारा चातुर्मास हेतु हृदय को झंकृत कर देने वाली काव्यमयी विनति प्रस्तुत की गई। गोटन, नागौर, भोपालगढ एवं पीपाड़ के श्री संघों ने क्षेत्र-स्पर्शन हेतु विनति रखी।
मेड़ता में त्रिदिवसीय बाल-सामायिक शिविर आयोजित किया गया। २० फरवरी १९८४ को प्रवर्तक श्री कुन्दनमलजी म.सा. के स्वर्गवास के समाचार पाकर हार्दिक श्रद्धांजलि दी गई तथा चार लोगस्स द्वारा कायोत्सर्ग किया गया। प्रवर्तक श्री शान्त स्वभावी, सरल परिणामी श्रमण संस्कृति के हिमायती एवं निराडम्बरी सन्त थे। यहाँ श्री नेमीचन्दजी बाफना ने आजीवन शीलवत की प्रतिज्ञा ली।
__चरितनायक यहाँ से कलरू, गोटन, हरसोलाव, नोखा (चांदावतां) रूण. खजवाणा आदि ग्रामों में धर्मगंगा प्रवाहित करते हुए पालड़ी (जोधा) पधारे । वहाँ ज्ञानगच्छीय महासतीजी श्री भँवरकवर जी म. आदि ठाणा ८ आचार्य श्री के दर्शनार्थ पधारी।
७ मार्च १९८४ को पूज्य गुरुवर मुण्डवा फरस कर गेंदतालाब, अट्यासन होते हुए नागौर पधारे, जहाँ शिष्यमंडली अगवानी हेतु उपस्थित हुई। ११ मार्च को श्री माणकमुनि जी म.सा. की पुण्यतिथि श्रावकों द्वारा विविध तप-त्याग, सामायिक, स्वाध्याय के नियमों को स्वीकार करते हुए मनाई गई। फाल्गुनी चौमासी पर अनेक क्षेत्रों ने श्री