SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड २४१ को विकसित करने की विलक्षण प्रतिभा चरितनायक के अनूठे व्यक्तित्व को प्रमाणित करती थी। आचार्य श्री चातुर्मासकाल में मोती डूंगरी तथा तख्नेशाही रोड पर क्रमश: नवलखाजी एवं बडेरजी के बंगले पर भी विराजे । यहाँ भी धर्माराधन का ठाट रहा । अपराह्न में पं. श्री शुभेन्द्रमुनिजी म.सा. ने जैन इतिहास पर विशद व्याख्यान दिए। पर्युषण पर्व पर लाल भवन में एवं 'प्रेम निकेतन' मोती डूंगरी पर सात दिन नवकार मन्त्र का अखण्ड जाप चला। १४ से १६ अक्टूबर तक विशिष्ट साधकों का साधना शिविर एवं ३० अक्टूबर से १ नवम्बर तक स्वाध्याय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन हुआ। आचार्य श्री ने स्वाध्यायियों को ज्ञान एवं आचार के क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रभावी प्रेरणा की तथा महिला स्वाध्यायी तैयार करने हेतु समाज का ध्यान आकृष्ट किया। अ.भा. श्री जैन रत्न | हितैषी श्रावक संघ, जोधपुर , अ.भा. महावीर जैन श्राविका संघ, मद्रास के वार्षिक अधिवेशन तथा अ.भा. श्री जैन विद्वत् परिषद् द्वारा आचार्य श्री रत्नचन्द्र स्मृति व्याख्यानमाला और सामायिक संगोष्ठी के सफल आयोजन हुए। इस चातुर्मास में स्थानीय संघ ने तन, मन, धन से सेवा एवं धर्माराधना के संकल्प को साकार किया। बरसाती झरनों की तरह दर्शनार्थी बंधुओं का आवागमन जारी रहा, स्थानीय संघ पलक पावड़े बिछाए स्वागत सत्कार में लगा रहा। अपने आराध्य आचार्य प्रवर के चातुर्मास की पूर्णाहुति पर दर्शनार्थ उपस्थित हुए देश के कोने-कोने के हजारों लोगों में परस्पर सौहार्द और भ्रातृत्व-भाव सजीव हो उठा। चारों दिशाओं से आए लोगों के व्यापार और वाणिज्य, शिक्षा और रहन-सहन की जानकारी और आदान-प्रदान के साथ संयम पथ पर अग्रसर होने का सम्बल बढ़ा। देश के कोने कोने से आये लोगों में परस्पर अपनेपन की जागृति हुई । हजारों लोग यह जानते और मानते थे कि गुरुदेव ।। मेरे हैं/हमारे हैं और मैं गुरुदेव का हूँ/हम गुरुदेव के हैं। आचार्य श्री के इस विराट् व्यक्तित्व को ऋग्वेद के शब्दों में || -'सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः' कहा जा सकता है। २१ नवम्बर १९८३ को आचार्य श्री एवं संतों की विदाई वेला में जयपुर का 'चौड़ा रास्ता' भी सकड़ा पड़ गया। लाल भवन से विहार कर आचार्य श्री मोती डूंगरी एवं सुबोध कॉलेज होते हुए कइयों को एक वर्ष, दो वर्ष, तीन वर्ष एवं जीवन पर्यन्त के लिए शीलव्रत कराते हुए २५ नवम्बर को उपनगर बजाजनगर के साधना-भवन में पधारे । यहाँ श्रमण संघ के युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी म.सा. के हृदयाघात से नासिक (महाराष्ट्र) में देवलोक होने की सूचना मिली। संवेदना सभा में युवाचार्य श्री के जीवन पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए चतुर्विध संघ ने श्रद्धांजलि अर्पित की। आचार्यप्रवर की अनुज्ञा से मद्रास में शासनप्रभाविका महासती श्री मैनासुन्दरी जी म.सा. द्वारा तीन वैरागिन बहनों को मार्गशीर्ष शुक्ला चतुर्दशी को भागवती दीक्षा प्रदान की गई। सुश्री पूर्णिमा, सुश्री सविता तथा सुश्री अंजू का दीक्षा के पश्चात् नाम क्रमश: साध्वी ज्ञानलताजी, दर्शनलताजी एवं चारित्रलताजी रखा गया। • मुमुक्षु प्रमोद कुमार जी की दीक्षा १५ दिसम्बर ८३ गुरुवार को विजय योग के शुभ मुहूर्त में दोपहर सवा बारह बजे जयपुर के बालोद्यान रामनिवास बाग में हजारों श्रद्धालुओं के मध्य आचार्य श्री ने श्रमणजीवन की सार्थकता का विवेचन करते हुए विरक्त बंधु श्री प्रमोदकुमार जी मेहता (सुपुत्र श्री सूरजमलजी मेहता FCA एवं श्रीमती प्रेमबाई मेहता, अलवर) को भागवती दीक्षा प्रदान की। अलवर के सुशिक्षित सुसंस्कारित परिवार के इस उच्च शिक्षा प्राप्त युवक के मोक्ष-मार्ग में अग्रसर होने के इस क्षण के साक्षी बन हजारों श्रद्धालु अपने को धन्य मान रहे थे एवं साधनानिष्ठ गुरु के पावन सान्निध्य में उनके सर्वतोभावेन समर्पण का यह स्वर्णिम सुअवसर अपलक दृष्टि से देख अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव कर रहे थे। इससे पूर्व दीक्षार्थी प्रमोद कुमार की उत्कट वैराग्य भावना एवं अनूठे त्याग की अनुमोदना में अ.भा. श्री जैन रत्न
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy