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________________ राजस्थान की धरा पर पुनः प्रवेश जयपुर, जोधपुर एवं भोपालगढ़ में चातुर्मास (संवत् २०४० से २०४२) • आवर होकर कोटा सवाईमाधोपुर फाल्गुन कृष्णा अष्टमी को बड़ोद से कच्चे मार्ग से कंकरीली भूमि पार करते हुए पूज्य चरितनायक राजस्थान की सीमा मे प्रवेश कर प्रात: लगभग ११.३० बजे डग के धर्मस्थानक में पधारे। यहां १०० जैन घरों की बस्ती है। रात्रि में ज्ञान पिपासु श्रावक श्री मांगीलालजी ने ज्ञान सूर्य आचार्य हस्ती से अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त कर अपने ज्ञान में अभिवृद्धि की। यहां से विहार कर आप हरनावदा पधारे व मन्दिर में विराजे। दूसरे दिन आप आवर पधारे । संवत् २०३९ फाल्गुनी पूर्णिमा के अवसर पर इस छोटे से ग्राम आवर में ७२ दयाव्रत , उपवास व पौषध हुए। संयम साधक आचार्य भगवन्त की पावन प्रेरणा से प्रतिवर्ष स्थानक के समक्ष होने वाला होलिका दहन नहीं हुआ, इतना ही नहीं जन समुदाय ने भविष्य के लिये भी होलिका दहन व रंग खेलने का त्याग कर दिया। करुणाकर के साधनातिशय व पावन प्रेरणा का ही सुफल है कि यहां जैन-अजैन कोई भी व्यक्ति होलिका-दहन नहीं करता व रंग कीचड़ नहीं उछालता। जन-जन की अनन्य आस्था के केन्द्र पूज्य आचार्य हस्ती का पांच वर्ष से अधिक अन्तराल के पश्चात् राजस्थान की भूमि पर पदार्पण हुआ था। धर्मभूमि राजस्थान के सभी क्षेत्रों के निवासियों के मन में आशा, उमंग व उत्साह का संचार था। सभी इस बात से प्रमुदित थे कि हम अब सहजता से पूज्यपाद के पावन दर्शन, वन्दन व सान्निध्य का लाभ ले सकेंगे व जिनवाणी की पावन गंगा अब हमारे क्षेत्र को भी पावन कर भक्तों के हृदय के अज्ञान तिमिर को हर कर ज्ञान का शुभ्र प्रकाश फैलायेगी। सभी क्षेत्र समुत्सुक थे कि उनके क्षेत्र को इस ज्ञान सूर्य के सान्निध्य का शीघ्र व प्रथम लाभ मिले। इसी भावना से आवर मे होली चातुर्मासी के अवसर पर जोधपुर, कोटा, सवाई माधोपुर , अलीगढ-रामपुरा के श्री संघ एवं जयपुर का शिष्ट मंडल अपनी-अपनी विनति लेकर उपस्थित हुए। आवर से २९ मार्च १९८३ को विहार कर पूज्यपाद के करावन पधारने पर १२ बन्धुओं ने सामायिक संघ के सदस्य बन कर नियमित सामायिक आराधना का संकल्प लिया व श्री अमरालाल जी मेहर ने आजीवन शीलव्रत अंगीकार कर अपने जीवन को सम्पन्न बनाया। यहां से पूज्यप्रवर बोलिया, मिश्रोली, पचपहाड़ आदि क्षेत्रों को पावन करते हुए भवानीमण्डी पधारे । मार्गस्थ क्षेत्रों में पं. रत्न श्री हीरामुनिजी म.सा. (वर्तमान आचार्य प्रवर) के सामायिक, स्वाध्याय एवं शीलवत पर प्रेरक प्रवचन हुए। महापुरुषों का सान्निध्य जीवन-निर्माण करने वाला व वाणी सुफलदायिनी होती है। बोलिया में श्री. कन्हैयालालजी एवं श्री शंकरलालजी ने आजीवन शीलवत अंगीकार कर अपना जीवन धन्य किया। आचार्य हस्ती के सामायिक स्वाध्याय संदेश को जीवन में अपना कर अनेक व्यक्तियों ने सामायिक व स्वाध्याय के नियम ग्रहण किये। भवानीमण्डी से आपका पदार्पण भैंसोदा हुआ। यहाँ चैत्र कृष्णा सप्तमी को शीतला सप्तमी के दिन करुणाकर | ने माता का सच्चा स्वरूप बताते हुए फरमाया कि आज 'दयामाता' का आश्रय लेकर धर्म-मार्ग में प्रवृत्त होने की
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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