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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
२२९ निर्मल घाटा पार कर ३ फरवरी को आदिलाबाद पधारे, जहाँ तपागच्छीय आचार्य श्री पद्मसागर जी एवं महासती श्री जयश्री जी से मिलन के साथ तत्त्व चर्चा हुई। यहाँ से माघ पूर्णिमा को महाराष्ट्र की सीमा में प्रवेशार्थ पेनगंगा नदी को पार कर आचार्य श्री पाटन बोरी होते हुए पांढरकवड़ा, पधारे, जहाँ संघ प्रमुख श्री धनराजजी चोपड़ा ने आजीवन शीलव्रत अंगीकार किया। पीतलिया, बोगावत आदि परिवारों ने सेवा- भक्ति का अच्छा लाभ लिया। यहाँ से पिंपरी, | मारेगांव, मांगरूल होते हुए वणी पधारे, जहाँ उदयराज जी मोहनराज जी मूथा ने दर्शन प्रतिमा एवं एकान्त बाल | सम्बंधी प्रश्नों का आचार्यप्रवर से सटीक समाधान प्राप्त किया। फिर सावरला फरसते हुए वरोरा पधारे, जहाँ गोंडल सम्प्रदाय की महासती सन्मतिप्रभाजी आदि ठाणा ३ ने दर्शन-वन्दन, प्रवचन-श्रवण के अतिरिक्त शास्त्रीय प्रश्नों के समाधान प्राप्त किए। फाल्गुन कृष्णा ११ को विहार कर माढेली, नागरी होते हुए हिंगनघाट पदार्पण हुआ। मार्ग में श्री विमलमुनिजी, वीरेन्द्र मुनि जी म. ठाणा २ ने आगरा से आंध्र की ओर जाते समय सुखशान्ति की पृच्छा की।
१ मार्च ८२ को आचार्यप्रवर ने नागपुर सदर में प्रवेश किया, जहाँ स्थानकवासी और मंदिर मार्गी भाई एक संघ के रूप में मिलकर कार्य करते हैं। तीन दिवस तक वहाँ धर्मोद्योत करके आचार्य श्री वर्धमान नगर एवं फिर इतवारी नगर पधारे, जहाँ कई स्थानों के श्री संघों ने आचार्यश्री के दर्शन किये। इस अवसर पर १३-१४ फरवरी को विदर्भ जैन श्वेताम्बर सम्मेलन रखा गया, जिसमें समाज-सुधार के विभिन्न मुद्दों पर व्यापक चर्चा व सहभागिता के साथ अनेक निर्णय लिए गए। सम्मेलन के अवसर पर आये प्रतिनिधियों को उद्बोधन देते हुए पूज्यप्रवर ने शुद्ध आहार-विहार व परिग्रह-परिमाण की प्रेरणा देते हुए तपस्या के प्रसंगों पर आडम्बर व मृत्यु के पश्चात् रोने-विलाप करने जैसे अनर्थदण्ड के त्याग का आह्वान किया। इस अवसर पर श्री भंवरलाल जी सुराणा, श्री भीकमचन्दजी सुराणा, श्री मोहनलालजी कटारिया, श्री चम्पालालजी भण्डारी, श्री भंवरलालजी मुणोत, श्री हीराचन्दजी फिरोदिया, लाला किशन चन्दजी तातेड दिल्ली एवं श्री जवरीलालजी मुथा हास्पेट इन आठ दम्पतियों ने आजीवन शीलव्रत अंगीकार किया।
२५ मार्च ८२ को आचार्य श्री पवनार स्थित विनोबा आश्रम में विराजे । आचार्य श्री का मौन दिवस था। यहाँ विनोबा जी के लघु भ्राता वयोवृद्ध शिवाजी राव भावे ने आचार्य श्री के दर्शन कर उन्हें आश्रमवासियों की ब्रह्मचर्य के साथ सादगीपूर्ण ढंग रहने की दिनचर्या सम्बंधी जानकारी दी। विक्रम संवत् २०३९ के नये वर्ष में वर्धा से अगवानी करने आए हुए अनेक भाई-बहनों ने भगवान महावीर एवं आचार्य श्री के जयनारों से आकाश गुंजायमान करते हुए नगर प्रवेश कराया।
वर्धा विदर्भ का एक जिला है। महात्मा गाँधी और विनोबा भावे के आंदोलन का यह केन्द्र रहा है। वर्धा से | विनोबा भावे का आश्रम ९ कि.मी. दूर है। आस-पास के जन-मानस पर अहिंसा का प्रभाव परिलक्षित होता है । | कर्मठ कार्यकर्ता श्री मूलचन्द जी वैद्य के श्रम से महावीर भवन में छोटा सा पुस्तकालय, छात्रावास और सामायिक | प्रार्थना का क्रम चलता है। यहाँ रालेगाँव, यवतमाल, धामनगाँव, पूलगाँव, चान्दूर रेलवे आदि क्षेत्रों के संघ पूज्यपाद | के दर्शन तथा जिनवाणी-श्रवण का लाभ लेकर आनंदित हुए। यवतमाल के चार भाइयों ने १०० स्वाध्यायी बनाने | का संकल्प लिया। इस धर्म-प्रभावना से आचार्यश्री ने ११० कि.मी. का चक्कर होते हुए भी यवतमाल की ओर | विहार किया। २८ मार्च को आचार्य श्री वर्धा से विहार कर सांवगी, देवली, भिड़ी, कामठवाड़ा होते हुए कात्री पधारे, | जहाँ एक रात्रि के धर्मोपदेश के फलस्वरूप २३ व्यक्तियों ने मांस-मदिरा सेवन का त्याग किया । ___ कात्री से रालेगाँव पधारने पर ७० भाई-बहनों ने सामायिक-स्वाध्याय के नियम ग्रहण किए। रात्रि में |