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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
२१७ भगवान महावीर का कैवल्य कल्याणक मनाया गया। यहाँ से चरितनायक २८ अप्रेल को विहार कर तावरीखेड़ा होते हुए ४० किलोमीटर दूर कोलार तथा वहां से ३१ किलोमीटर दूर कोलार गोल्ड फील्ड पधारे। वहां से भगवन्त वेतमंगला, वी. कोटे नाइकनेरी पेरणम पैठ, गुडियात्तम ग्राम, केवीकुप्पम् फरसते हुए विरंजीपुरम पधारे । प्राणिमात्र के अभयदाता षट्काय प्रतिपालक पूज्य आचार्य भगवन्त की प्रेरणा से यहाँ पशुबलि बन्द हुई व अबोध जीवों को अभयदान मिला । यहाँ से विहार कर आप ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या दिनांक १२ मई को वेल्लूर पधारे।
आराध्य गुरुदेव के वेल्लूर पधारने पर समूचे तमिलनाडु में निवास कर रहे श्रद्धालु भक्तों व प्रवासी राजस्थानी भाइयों के मन में नव उत्साह का संचार हुआ और उनके मन में गुरु-भक्ति के साथ शासन-सेवा हेतु समर्पण भाव | हिलोरें लेने लगा। अपने चिकित्सा केन्द्र व क्रिश्चियन मेडिकल कालेज के कारण प्रसिद्ध इस वेल्लूर नगर में पूज्य चरितनायक की प्रेरणा से विश्रान्ति गृह 'शान्ति भवन' के मैनेजर श्री लालसिंह जी राजपूत द्वारा सपरिवार आजीवन | मांस-भक्षण का त्याग वेल्लूरवासियों के लिये प्रेरणा का स्रोत रहा। यहाँ पूज्यपाद ने अपने प्रभावक प्रवचन में दर्शन, श्रवण, अवधारण व आचरण रूप चतुर्विध भक्ति का निरूपण करते हुए दर्शन-भक्ति के अन्तर्गत धर्मस्थान में जाने के लिये पाँच अभिगम की व्याख्या करते हुए निम्नांकित रचना प्रस्तुत की -
कर सचित्त परिहार, अचित्त संवृत कर राखे। अंजलि बाँधी विनय सहित, गुरुवर मुख देखे। तन-मन पाप निषेध, जिनेश्वर आज्ञा पाले. मुख पर उत्तरासंग धार, निरवद वच बोले । अभिगम पाँच पाले सही, चूक करे नहीं एक ही
समझू श्रावक मान लो, जिन आराधक वही॥ यहां से पूज्यवर्य दिनांक २३ मई को विहार कर तमिलनाडु के महत्त्वपूर्ण स्थल आरकाट, बालाजी पेठ, बालचेट्टिछत्रम् आदि क्षेत्रों को पावन करते हुए २८ मई को वैष्णव संस्कृति के प्रमुख स्थल कांचीपुरम पधारे, जहां पूज्य संतों के शुभागमन से चिलचिलाती धूप भी प्रसन्न प्रकृति में बदल गई। यहाँ पर प्रथम ज्येष्ठ शुक्ला १४ को क्रान्तद्रष्टा क्रियोद्धारक पूज्य आचार्य श्री रतनचन्दजी म. सा. की १३५ वीं पुण्यतिथि के पावन प्रसंग पर पूज्य आचार्य भगवन्त ने उनके जीवन की झांकी व जीवन मूल्यों को प्रस्तुत करते हुए धर्मशासन में मर्यादा पर बल दिया।
कांचीपुरम् से विहार कर बालाजाबाद सुंकुवारछत्रम् पेरुम्बुदूर आदि मार्गस्थ क्षेत्रों को अपनी पद रज से पावन करते हुए पूज्यपाद ठाणा ८ से मद्रास महानगर के प्रवेश द्वार पुनमली पधारे । पुनमली में धर्म प्रेरणा कर आप कुणतुर फरसते हुए ताम्बरम् पधारे, जहाँ नवयुवक मंडल गठित हुआ ताम्बरम् से क्रोमपेठ होकर आप पल्लावरम् पधारे।।
यहाँ अपने प्रवचनामृत में पूज्यप्रवर ने बुभुक्षु से मुमुक्षु बनने की प्रेरणा करते हुए श्रावक के तीन कर्तव्य बताये - श्रद्धा, विवेक और क्रिया। ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या को आलन्दूर में आपने त्याग व संयम की श्रेष्ठता का विवेचन करते हुए फरमाया -“परिग्रह से चिपका आज का श्रावक धर्म को अच्छा मान कर भी उसका आचरण क्यों नहीं करता ? भोग से अलग कर संयम के सिंहासन पर बिठाने पर भी जो दुःख का अनुभव करे, वह कैसा जैन?" यहाँ समाज में काफी लम्बे समय से मतभेद व मनोमालिन्य था, जो आपके पदार्पण व पावन प्रेरणा से मिटा तथा समाज में स्नेह व मैत्री का वातावरण निर्मित हो गया। संघ व समाज को अनेकविध उपकारों से उपकृत करते हुए पूज्यप्रवर सइदापेठ पधारे। यहां क्रान्तदृष्टा चरितनायक ने अपने क्रान्तिकारी उद्बोधन में