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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
परम पूज्य गुरुदेव से जिन्हें सम्यक्त्व बोध लेने का सौभाग्य मिला है, वे सब इस बात के साक्षी हैं कि गुरुदेव | सम्यक्त्व के माध्यम से जैन श्रावक - दीक्षा देते हुए भक्तजनों को आत्मा, धर्म व आराध्य का सरल सहज भाषा में | बोध करा देते थे। आप फरमाया करते थे कि जो राग-द्वेष से सर्वथा परे हैं, जो न तो स्तुति प्रशंसा से प्रसन्न हो वरदान देते हैं, और न ही निन्दा से नाराज हो अभिशाप देते हैं, जो सांसारिक ऐश्वर्य, धन-वैभव व शृंगार की बजाय अनन्त आत्मवैभव सम्पन्न हैं, जिनके पार्श्व में न देवी है न ही जिनके हाथों में हिंसा प्रतिहिंसा के प्रतीक अस्त्र-शस्त्र ही हैं, जो सदा-सदा के लिये कृतकृत्य हो चुके हैं, जिन्होंने सदा सर्वदा के लिए जन्म-मरण का बन्धन समाप्त कर दिया है, जो न तो लीला करते हैं, न ही देह धारण, जो अठारह दोषों से रहित हैं, वे ही सच्चे परमात्मा हमारे आराध्य देव हैं। उनकी आराधना कर यह आत्मा भी परमात्मा बन सकता है, फिर आराधक और आराध्य में कोई भेद नहीं रहता ।
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चौशाला से विहार कर चरितनायक पार गांव पधारे, जहां विराजित महासती श्री शीतलकंवर जी आदि ठाणा | ने आपके दर्शन, वंदन व प्रवचन- सेवा का लाभ लिया। यहां पर प्रवचन में बीड, वार्शी, चौशाला आदि क्षेत्रों के श्रावक-श्राविका भी उपस्थित थे । पूज्यपाद जहां भी पधारे, निकटवर्ती ग्राम-नगरों के श्रावक-श्राविकाओं में यह क्रम | चलता रहा। पारगांव से विहार कर पूज्यपाद ने येसमंडी, तेरखेडा, पीपल पाथरी, धानोरा, कुशलंब आदि क्षेत्रों को | अपनी पद रज व पीयूष प्रवचनामृत से पावन बनाते हुए ३८ वर्ष के दीर्घ अन्तराल के पश्चात् वार्शीनगर पदार्पण किया। यहां रायचूर का शिष्टमंडल आपके चरणों में क्षेत्र स्पर्शन व आगामी चातुर्मास की विनति लेकर उपस्थित | हुआ। वार्शीनगर से करुणानाथ पानगांव, वैराग, बडाला होते हुए महाराष्ट्र के सीमावर्ती औद्योगिक नगर शोलापुर | पधारे। यहां पौष शुक्ला १४ को आपका ७० वां जन्म दिवस मनाने हेतु महाराष्ट्र की जनमेदिनी उमड़ पड़ी। जलगांव, मद्रास, बैंगलोर, जयपुर, इन्दौर, उज्जैन, रायचूर, बीजापुर, बागलकोट प्रभृति विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्तजन | अपनी अनन्य आस्था के केन्द्र महनीय गुरुदेव की जन्म जयन्ती के इस पावन प्रसंग पर मंगलमय दर्शन - वन्दन व पातकहारिणी पीयूष पाविनी वाणी का पान करने हेतु उपस्थित थे । त्यागमूर्ति गुरुदेव का जन्म - दिवस उपवास दयाव्रत, सामायिक व स्वाध्याय की आराधना के साथ मनाया गया। स्थानकवासी समाज के करीब ५०, मन्दिर मार्गी समाज के २०० और दिगम्बर परम्परा के करीब चार हजार घरों वाले इस श्रद्धाशील नगर के युवकों ने सड़कों पर | नृत्य करने का सामूहिक त्याग कर समूचे जैन संघ की ओर से जिन शासन के युगप्रभावक आचार्यदेव को सच्ची भेंट प्रदान की । युवा बन्धुओं ने स्वाध्याय का नियम अंगीकार कर “गुरु हस्ती के दो फरमान, सामायिक स्वाध्याय महान् ” को जीवन में अंगीभूत करते हुए धर्मशासन की प्रभावना की। इस अवसर पर यादगिरि से उपस्थित एक | बहिन ने ३० का प्रत्याख्यान कर त्याग तप के इस आयोजन में अपनी भक्ति का अर्घ्य दिया तो आपकी सेवा में निरत श्री हरिप्रसाद जी जैन भी रात्रि मे चौविहार त्याग एवं एक वर्ष का शीलव्रत अंगीकार कर श्रद्धा समर्पण में पीछे नहीं रहे ।
शोलापुर से विहार कर मार्गस्थ क्षेत्रों को पावन करते हुए चरितनायक लश्कर पधारे। मार्ग में श्राविका नगर में आपने दुःखमुक्ति एवं अनन्त अव्याबाध अक्षय सुखों की प्राप्ति पर उत्तराध्ययन सूत्र की गाथा नाणस्स सव्वस्स | पगासणाए ' का मार्मिक विवेचन करते हुए फरमाया- “वस्तुतः मोह एवं अज्ञान ही दुःख के मूल कारण हैं। इन पर विजय से दुःखों से मुक्ति निश्चित है।
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