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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं २०८ है । मुनि सम्मेलन में प्रतिबंधित है और हमारी परम्परा में भी इस पर प्रतिबंध है। आपके सिद्धान्त आपके पास हैं. उनके अनुसार हर अवसर पर फोटो खींच लेने की आपकी परंपरा है, उसको संतों के फोटो खींचने के काम में न लावें । ऐसे नमूने हो चुके हैं, इसलिए आपको सावधान किया है। कोई भी व्यक्ति संतों के फोटो नहीं खींचेगा। (आपने सबको इसका त्याग करवाया)
दूसरी बात याद रहे कि अब तक पुस्तकें और कुछ ग्रंथ लिखने, संपादन करने, संशोधन करने-कराने का जो काम आया उसमें हम संशोधन करते रहे। छपाने के सम्बन्ध में प्रेरणा करने का ऐसा हमारा सम्बन्ध नहीं रहा, तथापि कुछ विचार करके हमने उचित समझा कि आज से लेखक के नाम से किसी ग्रन्थ पर हमारा नाम प्रकाशित नहीं किया जायेगा। हमारे नाम से किसी पुस्तक का प्रकाशन नहीं किया जायेगा। यह निर्णय आज लिया गया है।
जलगाँव में पूज्यपाद का यह चातुर्मास स्वाध्याय, साधना, धर्मप्रचार सभी दृष्टियों से एक सफल ऐतिहासिक चातुर्मास था। इस वर्षावास का प्रभाव खानदेश के बहुत बड़े भूभाग के ग्राम-नगरों पर पड़ा। इसका कारण रहा विचार की ठोस नींव पर आचार का प्रचार । इस चातुर्मास से जलगांव आर्यधरा भारत के धार्मिक नक्शे पर प्रमुख केन्द्र बिन्दु के रूप में मण्डित हो गया। महाराष्ट्र स्वाध्याय संघ की स्थापना के साथ-साथ उदीयमान समाजसेवी,
अनन्य गुरुभक्त श्री सुरेश दादा जैन द्वारा २५ अक्टूबर १९७९ को 'महावीर जैन स्वाध्याय विद्यापीठ' की स्थापना | इस चातुर्मास की प्रमुख उपलब्धि और जिनशासन सेवा का उल्लेखनीय सोपान था। प्रबुद्ध विद्वान् स्वाध्यायी श्री प्रकाशचन्द जी जैन के प्राचार्यत्व में विद्यापीठ द्वारा जैन दर्शन के विद्वान अध्यापक तैयार करने का महान कार्य किया जा रहा है। श्री सुरेश दादा जैन के जीवन एवं विचारों में परम पूज्य गुरुदेव के पावन दर्शन व सान्निध्य लाभ से आया परिवर्तन एवं उनके परिवार की मर्यादित जीवन शैली, उनके द्वारा शासन सेवा हेतु किया गया समर्पण और अपने आराध्य गुरुदेव की प्रेरणाओं को साकार स्वरूप देने की तत्परता, संघ व समाज के लिये गौरव का विषय है। जलगांव के सुज्ञ उदारमना श्रीमन्त श्रावकों द्वारा वात्सल्य समिति के गठन के माध्यम से जरूरतमंद स्वधर्मी बन्धुओं को आजीविकोपार्जन के साधन जुटाकर आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास सराहनीय एवं अन्य क्षेत्रों के लिये प्रेरक है। • महाराष्ट्र भ्रमण
जलगांव का ऐतिहासिक वर्षावास सम्पन्न कर चरितनायक का विहार महाराष्ट्र के विभिन्न ग्राम-नगरों के | विचरण के लक्ष्य से हुआ। यहां से मार्गस्थ विभिन्न ग्रामों को अपनी पद रज से पावन बनाते हुए पूज्यपाद जामनेर पधारे। सामायिक स्वाध्याय के संदेशवाहक आचार्य भगवन्त के पावन सान्निध्य एवं मंगलमय उद्बोधन से ५१ व्यक्तियों ने सामायिक व २५ व्यक्तियों ने स्वाध्याय के नियम अंगीकार किये। ज्ञानाराधन हेतु आपकी प्रेरणा से यहां स्वाध्यायशाला का शुभारम्भ हुआ। दक्षिणवासी भक्तजन दीर्घकाल से यह भावना मन में संजोये हुए थे कि परम पूज्य गुरुदेव राजस्थान से आगे बढ़े तो हम उनके पावन विचरण-विहार की हमारी चिर संचित अभिलाषा को श्री चरणों में निवेदन करें। इस अभिलाषा को मद्रास संघ अध्यक्ष पद्मश्री मोहनमलजी चौरडिया ने जामनेर उपस्थित होकर भगवन्त के चरणों में अपने संघ, तमिलनाडु व समूचे दक्षिण क्षेत्र की ओर से भावभीनी विनति प्रस्तुत की। ____ जामनेर से आचार्य श्री पहुर पधारे। यहां समाज में १५ वर्षों से परस्पर वैमनस्य का वातावरण था। मैत्री, करुणा एवं प्रमोदभाव के जीवन्त प्रतीक पूज्यप्रवर ने अपने मांगलिक उद्बोधन में पारस्परिक कषाय छोड़कर प्रेम, सद्भाव एवं मैत्री भाव अपनाने की प्रेरणा की, जिसके फलस्वरूप दोनों गुटों के मुखिया श्री ऋषभजी व श्री मोहनजी