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________________ (प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड % 333 अपने उस मर्यादित साधु जीवन का अद्वितीय आदर्श जन-जन के समक्ष प्रस्तुत कर यह सिद्ध कर दिया कि दृढ़ || इच्छा-शक्ति हो तो साधना कठिन नहीं है। गुलाबपुरा से पुरातत्त्ववेता मनीषी जिनविजयजी की जन्मभूमि रूपाहेली में मास्टर चाँदमल जी आदि को | ज्ञान-चर्चा से लाभान्वित कर वैशाखकृष्णा तृतीया को कंवलियास पधारे । यह धर्म रुचि की दृष्टि से अच्छा क्षेत्र है। यहाँ पर भारतीय जहाजरानी निगम, दिल्ली के निदेशक श्री वी.आर. मेहता ने सपत्नीक दर्शनलाभ कर प्रसन्नता का अनुभव किया। यहां से सरेड़ी के साताकारी धर्मस्थान में एक रात्रि व्यतीत कर आप रायला रोड़ के माच्छर भवन में विराजे । दूसरे दिन आपने बनेडा जाते समय वटवृक्ष के नीचे चबूतरे पर रात बिताई । बनेड़ा में रतलाम के प्रतिनिधि मण्डल (पी.सी. चौपड़ा, जीतमल जी छाजेड, बसन्तीलाल जी सेठिया आदि ) ने चातुर्मास हेतु विनति की। सायंकाल चाँदनी चौक दिल्ली के लाला किशोरीलाल जी जैन ससंघ उपस्थित हुए। फिर छापरी, सांगानेर होते हुए आपका भीलवाड़ा में प्रवेश हुआ। भोपालगंज भीलवाड़ा में वर्षीतप पारणों का || तपोत्सव-समारोह आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत वातावरण में सम्पन्न हुआ। भोपालगंज में उपस्थित जन-जन आचार्य श्री को परम पावन तीर्थराज का मूर्त रूप समझ रहा था, जिनके मुखारविन्द से प्रकट जिनवाणी-सरिता में अवगाहन कर सभी स्वयं को निलमना बनाने का प्रयास कर रहे थे। यहाँ वर्षीतप पारणे के अवसर पर अन्य मासक्षपण आदि तपस्याओं के भी पारणक हुए। क्षुधा-पिपासा विजय तथा दृढ़ इच्छा-शक्ति के प्रतीक तपाराधन से उत्पन्न तेज का अनूठा माहौल जैन तथा अजैन समाज को विस्मित कर रहा था। प्रवचन सभा में महासती श्री यशकुंवरजी म.सा. ने पूज्यचरण आचार्यप्रवर के विशिष्ट व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अपने विचार प्रकट करते हुए फरमाया - "मुझे आचार्य श्री के सान्निध्य में दो चातुर्मास करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैंने साधना का अति उत्कृष्ट रूप जैसा आप में देखा, अन्यत्र दुर्लभ है। अगर मै आपको श्रमण वर्ग के पुष्करराज की संज्ञा दूँ तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। " आचार्य प्रवर ने प्रवचन में तप के महत्त्व पर प्रकाश डाला। गुरुदेव की जयघोषों के साथ समारोह सम्पन्न हुआ। रणजीत मुनिजी आदि ठाणा ३, शासन प्रभाविका यशकंवर जी म. आदि ठाणा १५, सती पानकंवरजी आदि ठाणा ६ के साथ अनेक संघ प्रमुखों से यहाँ चतुर्विध संघ की विकास चर्चाएँ हुई। जोधपुर निवासी भंडारी प्रकाशचंदजी ने ३२ वर्ष की अवस्था में वर्षीतप के साथ आजीवन शीलव्रत स्वीकार किया। विगत कतिपय माह से चल रही विनति को इन्दौर संघ ने पुन: पुरजोर शब्दों में रखा एवं यह भरोसा दिलाया कि आचार्य श्री की विचारधारा एवं रीति-नीति का इन्दौर संघ पूर्णरूप से पालन करेगा। ध्वनियन्त्र का उपयोग नहीं किया जायेगा। तदनन्तर आचार्यप्रवर ने इन्दौर संघ को साधु-मर्यादा के अनुरूप स्वीकृति फरमायी। यहाँ पर एक दिन व्याख्यान में मोक्षमार्ग का विवेचन करते हुए सम्यग्दर्शन का विश्लेषण किया एवं फरमाया – “भगवान महावीर ने देव-देवियों के पुजारियों को आत्मपूजा और आत्मजागरण की शिक्षा दी। शान्ति का स्रोत अपने भीतर बतलाकर पुरुषार्थ को उसकी प्राप्ति का उपाय बताया।" . चित्तौड़ स्पर्शन काशीपुरी, स्वरूपगंज, हमीरगढ़, गंगरार रोड़, पुठोली को फरसते हुए आचार्यप्रवर वैशाख शुक्ला ११ वि. संवत् २०३५ को मीरानगर चित्तौड़ पधारे। आपके प्रवचनों से प्रभावित युवकों ने नित्य स्थानक में आकर सामायिक-स्वाध्याय करने का नियम लिया। आचार्य श्री ने हिन्दूकुल सूर्य प्रताप के हितैषी भामाशाह की आन, बान . और शान का स्मरण कराते हुए उपस्थित श्रोताओं को धर्म-क्षेत्र में अपनी शक्ति लगाने का आह्वान किया।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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