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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड १८३ बहिन इचरजकंवर जी की १६५ दिवसीय दीर्घ तपस्या का पूर सन्निकट था । जयपुर संघ तप के इस महा | आयोजन को विराट रूप देने को उत्सक था। इस दिन का प्रवचन जयपुर के रामलीला मैदान में था, प्रवचन सभा में अनेकों ग्राम नगरों के भाई-बहिन तप का अनुमोदन करने हेतु उपस्थित थे। भारत सरकार के तत्कालीन खाद्य मंत्री श्री जगजीवन राम राज्य के मख्यमंत्री श्री हरिदेव जोशी, वित्तमंत्री चन्दनमल वैद आदि राजनेता भी उपस्थित थे। परम पूज्य गुरुदेव ने तप का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए राजनेताओं एवं जन समुदाय में तप की प्रेरणा की। अपने विचार व्यक्त करते हुये आपने फरमाया कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में गांधी के तप की महनीय भूमिका रही है, आज के राजनेताओं को भी इस बात को समझना चाहिये। हितकर पथ्य श्री जगजीवनराम को मित व इष्ट नहीं लगा एवं वे अपने भाषण में अति कर गये। भक्त समदाय की भावनाएं आहत थीं, पर क्षमा आदि यतिधर्म के आराधक महासंत ने इसे सहज रूप में लिया और ध्यान का समय होते ही वे अपने दैनन्दिन नियम के अनुसार ध्यान-साधना में निरत हो गये। पश्चात् लाल भवन पधारे । प्रबल उत्साही युवा भक्त श्री विमल चन्दजी डागा, जयपुर ने गुरुदेव के चरणों में निवेदन किया –“भगवन् ! आज तो तीसरा नेत्र खोल देते।” क्षमा सागर, संयम साधक का त्वरित प्रत्युत्तर था“भोलिया ! तूने बैठे-बैठे ही पंचेन्द्रिय जीव की हत्या का पाप मोल ले लिया। करना तो दूर, मेरे मन में भी ऐसा ख्याल आ जाता तो मेरी साधुता ही चली जाती।" आपके दर्शन पाकर तथा आपसे वार्ता कर मंत्रीगण, न्यायाधिपति, वैज्ञानिक, दार्शनिक, कवि,लेखक, प्रशासनिक अधिकारी, प्रोफेसर, चिकित्सक, वकील, उद्योगपति, व्यापारी आदि लक्ष्मी तथा सरस्वती के प्रतीक अपने को गौरवान्वित अनुभव करते थे। जनसाधारण भी आपसे प्रभावित था। ___आचार्य श्री विहार क्रम में ठाणा ७ के साथ दूदू, हरसोली, पडासोली, डीडवाना, किशनगढ़ मदनगंज आदि क्षेत्रों को फरसते हुए आप ३ फरवरी १९७५ को अजमेर पधारे, जहाँ १३ फरवरी को महावीर भवन पाण्डाल में आपश्री की दीक्षा जयन्ती मनायी गयी। जिलाधीश रणजीतसिंह जी कूमट ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमें इस आध्यात्मिक हीरे से आध्यात्मिकता का प्रकाश प्राप्त कर अपने हृदय में स्वाध्याय की ज्योति जगानी चाहिए। |१६ फरवरी को वयोवृद्ध प्रवर्तक श्री हगामीलालजी म.सा. के साथ स्वामीजी श्री पन्नालालजी म.सा. की पुण्यतिथि एवं आचार्य श्री शोभाचन्द्र जी म.सा. की दीक्षा तिथि पर संयुक्त प्रवचन हुआ। यहाँ से केसरगंज, तबीजी, | बिडगच्यावास होते हुए लीड़ी, खरवा, ब्यावर, बर, निमाज, जैतारण, बिलाड़ा, भावी, पीपाड़ कोसाणा, मादलिया, रतकूड़िया होते हुए आप चैत्रशुक्ला पंचमी को भोपालगढ़ पधारे। भोपालगढ़वासियों ने महावीर जयन्ती हेतु भावभरी विनति गुरुचरणों में प्रस्तुत की। चरितनायक ने पाँच कार्यों के संकल्प की भावना के आधार पर स्वीकृति प्रदान की -१. मौन सामायिक २. दयाव्रत ३ व्यसन-त्याग ४. अहिंसा प्रचार ५. शिक्षण का उचित संकल्प। महावीर जयन्ती के अनन्तर आप बड़ा अरटिया, बुचेटी, दईकड़ा बनाड़ होते हुए जोधपुर पधारे। • जोधपुर में दीक्षा-प्रसङ्ग जोधपुर के सिंहपोल में अक्षय तृतीया के अवसर पर वर्षीतप के १७ पारणे हुए तथा न्यायाधिपति श्री | श्रीकृष्णमलजी लोढा एवं प्रियगायक भण्डारी दौलत रूपचन्दजी ने सदार आजीवन शीलवत अंगीकार किया। आपश्री के सान्निध्य में भीवराज जी कर्णावट भोपालगढ़ की वैशाख शुक्ला त्रयोदशी को और श्री ज्ञानराज जी
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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