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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं १७४ एवं अपने तप-त्याग के बल से कायकर्ताओं का बल बनें । कार्यकर्तागण अपने को संघ सेवा में समर्पित करने के साथ विद्वद्वर्य के चिन्तन एवं त्यागी सुश्रावकगण के संरक्षण के प्रति पूर्ण समादर रखें तथा उनके मार्गदर्शन में संघ को प्रगति पथ पर अग्रसर करने का पुरुषार्थ करें तथा स्वयं भी अपने जीवन में स्वाध्याय से ज्ञान ज्योति प्रज्वलित करने व सामायिक से व्रत ग्रहण कर साधना-शीलता को साथ में अपनाने का लक्ष्य रखें। इन्हीं सब भावनाओं को समाहित करते हुये संघ ने गुणी-अभिनन्दन योजना के अन्तर्गत प्रतिवर्ष कम से कम एक विद्वान्, एक साधक श्रावक एवं एक समाजसेवी कार्यकर्ता का अभिनन्दन कर उनके महनीय योगदान को उजागर करने का लक्ष्य रखा। पूज्यवर्य फरमाया करते कि गुणीजनों का अभिनन्दन वस्तुत: गुणों का अभिनन्दन है , गुणीजनों द्वारा समाज | पर किये गये उपकार से उऋण होने का एक छोटा सा प्रयास मात्र है। गुणियों के अभिनन्दन से गुणी- जन नहीं वरन् स्वयं समाज गौरवान्वित होता है। अजमेर में इस समय प्रवर्तक श्री छोटमल जी म.सा. , पं. रत्न श्री सोहनलाल जी म. भी ठाणा ३ से विराज रहे थे, अचानक प्रवर्तक स्वामी श्री छोटमलजी म. का अक्षय तृतीया पर स्वर्गवास हो गया। कायोत्सर्ग कर गुणानुवाद सभा की गई। • कोसाणा चातुर्मास (संवत् २०२९) अजमेर से तिलोरा, थांवला, भैरूंदा, मेवड़ा, पादू बड़ी-छोटी, मेड़तासिटी, गोटन, रजलाणी नारसर, भोपालगढ़, रतकुड़िया, खांगटा, मादलिया फरसते हुए चरितनायक आचार्य श्री ने ठाणा ६ (लघु लक्ष्मीचन्दजी म.सा, श्री माणकचन्दजी म.सा, श्री जयन्तमुनि जी म.सा, श्री हीराचन्दजी म.सा, श्री शुभमुनिजी म.सा. सहित) के साथ संवत् २०२९ का ५२वां चातुर्मास करने हेतु कोसाणा गांव में आषाढ शुक्ला प्रथम दशमी को प्रवेश किया। पूरा गाँव स्वागत में उमड़ पड़ा और आप श्री के प्रवचन प्रभाव से दशाधिक युगलों ने आजीवन शीलव्रत ग्रहण किया तथा मद्य-मांस त्याग के साथ ही प्रतिवर्ष ५ जीव अमर करने का नियम भी लिया। कोसाणा में आयम्बिल, दया, उपवास, बेले, तेले, अठाई आदि तपस्याओं का अद्भुत ठाट रहा। विश्नोई समाज के अमराजी ने २१ दिन की तपस्या की। धर्मध्यान में विश्नोई भाई मोतीजी, अणदाजी , फगलूजी, सालू जी आदि पचासों व्यक्तियों ने लाभ लेकर आचार्यप्रवर के चरणों में अपनी भक्ति अर्पित की। कोसाणा से साथिन पदार्पण पर आपकी प्रेरणा से ठाकुर गोविन्दसिंहजी ने जीवन पर्यन्त शिकार एवं अखाद्य के त्याग का नियम लिया। यहाँ से सेठों की रियां में आजीवन शीलव्रत कराते हुए पीपाड़ पधारे। श्रावकधर्म पर आचार्य श्री के प्रवचन से प्रेरणा लेकर अनेक भाई-बहनों ने १२ व्रत अंगीकार किए। यहाँ से भावी, बिलाड़ा, बालाग्राम, कापरड़ा, बीनावास, पालासनी, बिसलपुर, डांगियावास, बनाड़ को फरसते हुए तथा अनेक श्रावक-श्राविकाओं को शीलव्रत से मर्यादित करते हुए आप जोधपुर पधारे। इस बीच बालाग्राम से कापरड़ा की ओर विहार के समय आचार्य श्री चलते-चलते अचानक अपने साथ चल रहे श्रावकों से बोल उठे - “जिन शासन रूपी मान सरोवर का हंसा आज उड़ गया है।” यह जानकर विस्मय होता है कि कुछ समय पश्चात् जोधपुर से आये श्रावक श्री पारसमलजी रेड ने बताया कि बहश्रत पण्डितरत्न श्री समर्थमलजी म.सा. का स्वर्गवास हो गया है। आचार्यप्रवर को बहुश्रुत पण्डित मुनि जी के स्वर्गवास का पूर्वाभास हो गया था। श्री रेड जी से सूचना मिलने पर निर्वाण कायोत्सर्ग कर श्रद्धांजलि दी गई।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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