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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ।। १७२ आगोलाई में स्वास्थ्य लाभ हेतु १७ दिन विराजे। यहां कुंवर महेन्द्रसिंहजी द्वारा शराब के त्याग, घेवरजी संचेती द्वारा धूम्रपान-त्याग एवं रूपा घांची द्वारा चिलम पीने का त्याग किया गया, जो यह सिद्ध करते हैं कि आचार्य श्री का प्रभाव गाँव-गाँव, ढाणी-ढाणी के जन-जन पर था। ग्रामवासियों ने धर्माराधन व ज्ञानाराधन का उस अवधि में जो लाभ लिया उसे ग्रामवासी आज भी स्मरण करते हैं। पूज्यपाद के विराजने से आगोलाई ग्राम धन्य धन्य हो गया। आज यह छोटा सा गाँव रत्नवंश का विशिष्ट क्षेत्र है व यहाँ के सभी भाई-बहिन सामायिक-स्वाध्याय व संघ-सेवा में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। आगोलाई से चरितनायक कल्याणपुर पधारे। यहाँ आपने ज्ञान भंडार का अवलोकन किया। यहाँ से डोली, धवा, लूणावास बोरानाडा आदि क्षेत्रों को फरसते हुए आपने जोधपुर के उपनगर सरदारपुरा क्षेत्र में पदार्पण किया। अपने आराध्य गुरुदेव के पदार्पण से उत्साहित जोधपुर वासियों ने पूज्यपाद के पावन दर्शन, वन्दन व प्रवचनामृत का सोत्साह लाभ लिया। पूज्यवर्य का जोधपुर के जन-जन पर कितना व्यापक प्रभाव था, इसका अनुमान आपके अनन्य भक्त प्रसिद्ध भजनीक श्री दौलतरूपचंदजी भंडारी द्वारा व्यक्त इस बात से लगाया जा सकता है कि जब भी पूज्य महाराज पधारते हैं तो भीतों (दीवारों) से आदमी निकल आते हैं। कहने का आशय यही कि आप भले ही ग्राम-नगर, महानगर अथवा जंगल में जहाँ कहीं भी विराजते, नित्यप्रति सैकडों भक्त आपके दर्शनार्थ पहुँच कर अपने आपको सौभाग्यशाली समझते।। यहाँ फाल्गुन कृष्णा १२ शुक्रवार दिनांक १३ फरवरी १९७२ को आपके अन्तेवासी संत श्री मगनमुनि जी म.सा. का ज्वर के अनन्तर घोड़ों का चौक स्थानक में स्वर्गवास हो गया। श्री मगनमुनि जी म.सा. जोधपुर के सुश्रावक श्री सोनराज जी मुणोत के सांसारिक पुत्र थे व आपने जोधपुर में ही संवत् २०२० वैशाख शुक्ला त्रयोदशी को परम पूज्य चरितनायक के मुखारविन्द से श्रमण दीक्षा अंगीकार की थी। आप शान्त, दान्त, तपस्वी एवं सेवाभावी सन्त थे। थोकड़े सीखने सिखाने में आपकी विशेष अभिरुचि थी। आपके संयमनिष्ठ जीवन का परिचय देते हुए आपको श्रद्धांजलि दी गई। यहीं पर दिनांक १७ फरवरी को आचार्यप्रवर के परम भक्त, प्रखर प्रतिभा के धनी, अग्रगण्य संघसेवी प्रखर विचारक इस यशस्वी परम्परा के यशस्वी श्रावक श्री इन्द्रनाथ जी मोदी का स्वर्गवास हो गया। मोदी सा राजस्थान उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्त हुए । वे ओसवाल सिंह सभा, जोधपुर वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ एवं सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल आदि विभिन्न संस्थाओं के वर्षों तक अध्यक्ष रहे। समर्पित सुज्ञ श्रावक एवं विवेकशील व्यक्तित्व के निधन से श्रावक समाज को धक्का लगा। ___फाल्गुनी चातुर्मासिक पूर्णिमा को सरदार स्कूल के प्रांगण में चरितनायक का प्रभावी प्रवचन हुआ, जिसके श्रवणार्थ जोधपुर के पूर्व नरेश गजसिंह जी ने उपस्थित होकर अपने आपको कृतकृत्य समझा। जोधपुर से विहार कर आप काकेलाव पधारे। यहाँ आपने पल्लीवाल मन्दिर में ज्ञान भंडार का अवलोकन किया। यहां से रोहट पधारने पर जैन जैनेतर सभी ने आपके पावन-दर्शन एवं प्रवचन-पीयूष का लाभ लिया। आपके संयमनिष्ठ जीवन एवं तपःपूत व्यक्तित्व से प्रभावित होकर श्री गणेशजी पुरोहित ने आपसे धर्म का स्वरूप समझा व आपको अपना गुरु बना कर अपने आपको धन्य-धन्य माना। यहां से खारडा, गुमटी होते हुए चरितनायक चैत्रकृष्णा १२ को पाली पधारे। यहाँ ज्ञानगच्छीय महासती जी श्री सुमति कंवरजी, महासती श्री उमराव कुंवरजी 'अर्चना' , मेवाड़सिहनी
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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