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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
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९. मुखवस्त्रिका या रूमाल (उत्तरासन) का प्रयोग करके ही मुनि दर्शन करना। १०. शादी पर टीका प्रथा का त्याग।
११. मृत्यु पर रात्रि रुदन का त्याग। • मुमुक्षु हीरालालजी की दीक्षा
कार्तिक शुक्ला षष्ठी विक्रम सं. २०२० को प्रातः ९ बजे पीपाड़ में हिन्दू महासभा के पाण्डाल में २५ वर्षीय | मुमुक्षु श्री हीरालालजी गाँधी (सुपुत्र श्री मोतीलालजी गाँधी) को चरितनायक ने अपने मुखारविन्द से विधिवत् दीक्षा प्रदान की। दीक्षा के अवसर पर पूज्यपाद ने अपने विचार प्रकट करते हुए फरमाया - “भाइयों और बहिनों ! अभी जिस मंगलमय प्रसंग पर आप सब उपस्थित हुए हो, वह प्रेरणा दे रहा है कि मानव को आत्म-साधना द्वारा भौतिक प्रपंचों से अलग होकर आत्म-कल्याण करना चाहिये, क्योंकि भोग से योग की ओर, राग व भोग से त्याग की ओर, तथा अन्धकार से प्रकाश की ओर बढ़ना ही मानव जीवन का परम लक्ष्य है। अधिकतर जीव भोगों में फंसकर हाय हाय कर खाली हाथ रवाना हो जाते हैं। कोई शूरवीर ही यह सोचता है कि दुनिया और उसका वैभव मुझे छोड़ेगा, उसके पहले मैं दुनिया को छोड दूँ। धन, पद, कुटुम्ब और परिवार ये सब मुझे छोड़ेंगे, उसके पहले मैं इनको छोड़ दूँ। विश्व की रक्षा के लिए शस्त्रधारी सेना की अपेक्षा शास्त्रधारी सेना की अधिक आवश्यकता है। यदि संयमधारी सेना मजबूत नहीं होगी तो देश की आध्यात्मिक रक्षा नहीं होगी। मानसिक विकार, आध्यात्मिक रोग, वैर-विरोध, कलह
और अनीति के हमले से बचाने वाली सेना संयमधारी ही है। इस अवसर पर हर समाज के लोग बड़ी उमंग, उत्साह व लगन से आए हैं। मैं समझता हूँ कि इन सबको भी कुछ व्रत ग्रहण करना है। स्वाध्याय की प्रवृत्ति और सामायिक-साधना की लहर हर गांव के बच्चे से लेकर बूढे तक जगानी है।"
प्रवजित होने के पश्चात् नवदीक्षित सन्त का नाम 'मुनि हीराचन्द्र' रखा गया। आप सम्प्रति रत्नवंश के अष्टम पट्टधर आचार्य के रूप में जिन शासन की महती सेवा कर रहे हैं।
चातुर्मास में तप-त्याग का ठाट रहा। अनेक लोगों ने चारों खन्ध लिए। युवक भी स्वाध्याय से जुड़े। यहाँ पर डॉ. नरेन्द्र भानावत दर्शनार्थ पधारे तथा पूज्य श्री से आपकी धर्म, साहित्य, संस्कृति, और इतिहास विषयक कई बिन्दुओं पर चर्चा हुई। कई स्थानों से अनेक प्रमुख श्रावक-श्राविकाओं ने आकर लाभ लिया। श्री इन्दरनाथजी मोदी के नेतृत्व में सामायिक संघ का अधिवेशन हुआ। • पीपाड़ से जोधपुर होकर जयपुर
चातुर्मास के पूर्ण होने पर पालासनी आदि विभिन्न ग्रामों को पावन करते हुए चरितनायक का जोधपुर नगर | में पदार्पण हुआ। मुनि श्री मिश्रीमल जी म.सा. एवं पारस मुनि जी म. से स्नेहमिलन हुआ। यहाँ आपके प्रवचन से प्रभावित होकर सिन्ध निवासी मजिस्ट्रेट इंगानी ने जीवन भर के लिए मद्य-मांस का त्याग किया।
पाली पधारने पर पूज्यप्रवर का मंत्री श्री पुष्करमुनिजी म. एवं श्री देवेन्द्र मुनिजी म. से स्नेह मिलन हुआ व परस्पर ज्ञानचर्चा हुई। चरितनायक जहां भी पधारते , आबालवृद्ध सहज ही खिंचे चले आते। संयमशिरोमणि महापुरुष के सान्निध्य में आकर सामायिक स्वाध्याय व व्रत प्रत्याख्यान से अपने जीवन को भावित करते । आपके इस पाली प्रवास में अनेकों व्रत-प्रत्याख्यान हुए। लगभग २०० बालकों व तरुणों ने दयाव्रत की आराधना की।