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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं १३८ यहाँ ५-६ पौषध भी हुए। यहाँ से आप खजूरी, सीहोर, इच्छावर पधारे, जहाँ भोपाल के सेठ छोगमलजी, रतनचन्दजी कोठारी, सेजमलजी आदि उपस्थित हुए। यहाँ रात्रि में मोतीलाल जी से सांख्य एवं वेदान्त दर्शन में अन्तर पर चर्चा हई। प्रात:काल व्याख्यान में अधिकतम अजैन लोग थे। हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक के आग्रह से पूज्यप्रवर ने बच्चों को नैतिक शिक्षा पर उद्बोधन दिया। बालकों ने चोरी, नशा, निरपराध की हत्या एवं हिंसात्मक आन्दोलन के त्याग किये। शिक्षकों को भी जीवन निर्माणकारी शिक्षा देने हेतु प्रेरणा की। फिर चरितनायक धामनदा, पोंचानेर से नदी-मार्ग तय करते हुए अरणिया सुजालपुर मण्डी, तलेन, पचोर, खुजनेर छापेडा, जीरापुरा, बकाणी रीछवा आदि क्षेत्रों में जीवन निर्माणकारी नियम दिलाते हुए फाल्गुन शुक्ला तीज को पाटन पधारे। यहाँ के पंचायती भण्डार में १६ वीं शती तक के तीन चार बस्ते हैं। गोडीदासजी महाराज के शास्त्र दो पेटियों मे बन्द हैं। पाटन तक छोटे-छोटे ग्रामों में भी दूर दूर से भक्त श्रावक कृपालु गुरुदेव के दर्शनार्थ पहुँचते रहे। चरितनायक के प्रवचन-पीयूष से न जाने कितनों को सही राह मिली। बकाणी में आपने फरमाया-"मनुष्य जीवन को काम भोग में गंवाना केसर को गारे में | मिलाना है।" पाटन में प्रश्नोत्तर आदि के माध्यम से धर्म प्रेरणा कर रायपुर पधारकर आप धूपियाजी की धर्मशाला में विराजे। प्रात: ९ बजे तक व्यवसाय के हाथ न लगाने हेतु धूपिया जी ने ३ वर्ष की प्रतिज्ञा स्वीकार की। फिर पूज्यपाद ने झालावाड़, सुकेत, मोडक, मंडाणा अलनिया फरसते हुए कोटा में होली चातुर्मास किया। ___यहाँ आपश्री ने व्याख्यान में फरमाया “समकित किसी को दी या ली नहीं जा सकती। वह तो वास्तव में आत्मा का गुण है। मोह का आवरण दूर करने पर स्वतः प्राप्त होती है। व्यवहार में तत्त्व समझाने की दृष्टि से सम्यक्त्व देना कहते हैं और बोधदाता गुरु को सम्यक्त्वदाता कहते हैं। असलियत में सम्यग्दर्शन आत्मा का ही गुण है।" सुस्पष्ट है कि सम्यक्त्व बोध देने के बारे में आपके विचार कितने पवित्र पावन थे। आपने जीवन में बड़े से बड़े व्यक्ति को भी स्वयं उनका प्रबल आग्रह व अतिशय भक्ति होने पर भी कभी पूर्व गुरु आम्नाय परिवर्तन कर गुरु आम्नाय नहीं दी। आपसे उपकृत व प्रेरित अनेकों भक्तहृदय साधक आपसे गुरु
आम्नाय न मिलने पर भी आपको सदा भगवद् तुल्य मान कर आपकी सेवाभक्ति का लाभ लेने में कभी पीछे नहीं रहे। यहीं पर किसी दिन आपने श्रावकों को उद्बोधन करते हुए प्रवचन में फरमाया –“अतिशय ज्ञान की प्राप्ति में | चार बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-१. आहारशुद्धि का बराबर ध्यान रखे। २. चार विकथाओं का परित्याग
करे। ३. विवेक और व्युत्सर्ग से आत्मा को सम्यक् रूपेण भावित करे। ४. पूर्वापर रात्रि के समय धर्मजागरण करे।" “कम से कम श्रावक में तीन बातें तो होनी ही चाहिए। तभी वह साधारण श्रेणि का श्रावक होता है। वे तीन बातें हैं
१. इच्छा पूर्वक किसी त्रस जीव को जानकर नहीं मारना। २. मद्य-नशा और मांस-अण्डे आदि प्राण्यंग का उपयोग नहीं करना। ३. नमस्कार मन्त्र को ही आराध्य मानकर श्रद्धा रखना। सच्चे श्रावक-श्राविका वीतराग को छोड़कर इधर-उधर नहीं भटकते । सुख-दुःख तो स्वकृत पुण्य-पाप का फल
___ यहाँ पर कोटा, भोपालगढ़, पाली , पीपाड़ अजमेर , जयपुर, विजयनगर, मेड़ता आदि संघों ने चातुर्मास हेतु आग्रहपूर्ण विनति रखी। कोटा के श्रावकसंघ में पारस्परिक मनमुटाव था। चरितनायक के प्रेरक उद्बोधन से युवकों एवं बुजुर्गों में एकता कायम हुई एवं संघ में हर्ष का वातावरण बन गया। कोटा में चरितनायक ने विजयगच्छ का भण्डार देखा । अनेक पुस्तकें सन्दूकों में बन्द थीं। समुचित व्यवस्था न होने के कारण करीब गाड़ी भर पुस्तकें मिट्टी