SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं १२८ अध्ययन, मनन, चिन्तन उनकी दिनचर्या थी। दूसरा इस गहन अध्ययन व मनन से उत्पन्न विचारों को लेखनबद्ध कर नवीन ग्रंथों का आलेखन किया करते थे । चरितनायक ने संस्कृत भाषा में 'आत्माराम - अष्टक' बनाकर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। तीन दिन शान्तिजाप चला। I अपराह्न में आगम-वाचना का क्रम पूज्यप्रवर की नियमित दिनचर्या का अंग था। अजमेर में बृहत्कल्प सूत्र की वाचना पूर्ण होने पर माघ शुक्ला २ को निशीथसूत्र की वाचना प्रारम्भ की गई । श्रावकों में साप्ताहिक सामूहिक स्वाध्याय प्रारम्भ कराया । · किशनगढ़ होकर विजयनगर अजमेर में २७ दिन विराज कर आपने मदनगंज की ओर विहार किया। पुलिस लाइन के पीछे लोहारवान के | क्वार्टर में रात्रि बितायी। फिर माघ शुक्ला चतुर्दशी को १४ मील का विहार कर ध्यान का समय होने पर दोपहर १२ बजे सड़क पर ही ध्यान किया एवं दिन में १.३० बजे मदनगंज के उपाश्रय में पदार्पण किया । मदनगंज में माघपूर्णिमा के पावन दिवस पर गुरुदेव ने फरमाया-' आत्मा का स्वरूप समझकर विकार दूर कीजिए । पानी गर्म होकर भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता, आग को बुझा ही देता है । इसी प्रकार | क्रोधादि की अवस्था में भी हम अपना गुण क्यों छोड़ें। मनुष्य को काच के बर्तन की तरह कमजोर | नहीं होकर सुवर्ण पात्र की तरह ठोस होना चाहिए। कांचभाण्ड के समान मूर्ख व्यक्ति जरा सी ठेस में टूट जाता है, स्वार्थ की चोट से उसका प्रेम वैर में परिणत हो जाता है । परन्तु ज्ञानी सुवर्ण भाण्ड के समान होता है। बड़ी चोटों या प्रहारों से भी वह सहसा टूटना नहीं जानता। आप सुवर्ण भाण्डसम बनें, | कांच भाण्ड सम नहीं । स्वर्ण और पानी अपना स्वभाव नहीं छोड़ते, तब हम चेतन मानव अपना शान्त, | शुद्ध स्वभाव कैसे छोड़ सकते हैं। जरा शान्त मन से सोचिए ।" आपके प्रवचन व प्रेरणा से कई व्रत - प्रत्याख्यान हुए, बारह श्रावकों ने प्रतिमाह दया- पौषध का नियम लिया । | मदनगंज से आपका किशनगढ पदार्पण हुआ । यहाँ आपने संघ में ऐक्य व समन्वय के लिए महती प्रेरणा की । संघ- एकता के लिए बैठक रखी गई। रावसा पारख एवं श्री कुन्दनमल जी नाहर के सत्प्रयत्नों से बैठक सफल रही । यहाँ से गोधियाणा, तिहारी, कानपुरा मंडाणी, नसीराबाद, झडवासा, बांदनवाड़ा सिंगावल आदि ग्रामों में व्यसन मुक्ति, धर्म शिक्षण, स्वाध्याय, सामायिक आदि की प्रेरणा करते नसीराबाद होते हुए विजयनगर पधारे, जहाँ स्वामी जी श्री पन्नालाल जी म.सा. के सन्त आपकी अगवानी के लिए आए। विजयनगर के प्रांगण में स्थविर पद विभूषित पण्डितरत्न श्री पन्नालालजी म.सा, मंत्री श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. एवं चरितनायक ने श्रमण संघ की स्थिति पर विचार विनिमय कर प्रस्ताव तैयार किया - " समस्त स्थानकवासी समाज के अन्तर्मानस की भव्य - भावना को लक्ष्य में रखकर श्रद्धेय आचार्य श्री और उपाचार्य श्री गणेशीलालजी म.सा. के चरणारविन्दों मे निवेदनार्थ हमने एक प्रस्ताव भी निर्मित किया, पर ३० नवम्बर १९६० उदयपुर में उपाचार्य श्री ने उपाचार्य पद का त्याग करके अपने को श्रमण संघ से अलग घोषित किया, जिसे हम संघ - हितकर नहीं मानते हैं । हमारी यह हार्दिक भावना है कि वे पुनः संघहित व जिनाशासनोन्नति को लक्ष्य में रखकर इस पर गंभीरता से विचार करें और उलझी हुई समस्याओं को परस्पर विचार-विमर्श द्वारा किसी माध्यम से हल करके संघ-श्रेय के भागी बनें ।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy