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________________ ११८ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं जयपुर से विहार कर अजमेर नगर के महावीर भवन में चातुर्मासार्थ विराजे। वि.सं. २०१७ के अजमेर चातुर्मास में धर्म-प्रभावना के विभिन्न कार्यों के साथ एक महत्त्वपूर्ण कार्य यह हुआ कि यहाँ के बूचडखानों में दुधारू गायों और बैलों का जो कत्ल होता था वह आचार्य श्री के संकेत से एवं श्रावकों के प्रयास से पर्युषण के दौरान बन्द हो गया। जन-जन की श्रद्धा के केन्द्र पूज्यप्रवर ने पर्युषण के आठ दिनों के सम्बन्ध में मार्मिक प्रवचन दिए। आपने फरमाया कि आठ कर्म, आठ मद एवं आठ प्रमाद छोड़ने योग्य हैं तथा पाँच समिति एवं तीन गुप्ति रूप अष्ट प्रवचन माता ग्रहण करने योग्य है। इसी प्रकार आठ सिद्धियाँ, आत्मा के आठ गुण एवं अष्टांग योग भी ग्राह्य हैं। इस प्रकार पर्युषण के आठ दिनों का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए कृपानाथ ने श्रावक-समुदाय में सदाचार की महती प्रेरणा की। उल्लासपूर्ण वातावरण में तप-त्याग की शृंखला के साथ चातुर्मास सम्पन्न हुआ। • पीपाड़, भोपालगढ होकर जोधपुर की ओर ___ अजमेर चातुर्मास के पश्चात् चरितनायक किशनगढ़, तिहारी होते हुए विजयनगर पधारे । यहाँ आपका मंत्री श्री पुष्करमुनि जी से मधुर मिलन हुआ। फिर आप ब्यावर होते हुए निमाज पधारे जहाँ पौष शुक्ला चतुर्दशी को आपका ५१वां जन्मदिवस मनाया गया। यहाँ के नियमित शिकारी कुंवर श्यामसिंह जी ने गुरुदेव के वचनों से प्रभावित होकर शिकार का सदा के लिए त्याग कर दिया। यह कुंवरसा द्वारा अपने प्रधान बनने की खुशी में गुरु चरणों में अनुपम भेंट थी। अपने ५१ वें जन्म-दिवस के अवसर पर अध्यात्मरसिक चतिरनायक ने वर्षभर में ५१ स्वाध्यायी बनाने का संकल्प लिया तथा गतवर्ष किए गए संकल्प का पुनरवलोकन कर शीलव्रतियों एवं बारह व्रतियों की संख्या बढाने की प्रतिज्ञा की। विहार क्रम में राणीवाल ग्राम में श्री बालारामजी ने शिकार करने का त्याग किया। यहां से आप रणसीगांव, मादलिया होते हुए पीपाड़ पधारे, जहाँ मुनिश्री लाभचन्दजी म.सा. चौथमलजी म.सा. आदि का समागम हुआ। उत्तराध्ययन सूत्र के ३६ वें अध्ययन की वाचनी हुई। यहाँ बंशीलालजी मुथा, हस्तीमलजी एवं चौधरी जी के बास के अजैन बन्धु ने शीलवत अंगीकार किया। पीपाड़ से आप रीयां पधारे, जहाँ श्री प्रेमराज जी मुणोत ने सपत्नीक आजीवन शीलवत ग्रहण किया। यहाँ से साथिन पधारने पर कोट की कचहरी में तथा रतकूडिया पधारने पर मन्दिर में व्याख्यान हुए। पूर्णिमा को मेघ-वर्षा के कारण विहार नहीं हो सका, प्रतिपदा को विहार कर भोपालगढ़ पधारे। भोपालगढ़ में शिक्षा पर आपके प्रवचन से प्रभावित होकर स्थानीय कार्यकर्ताओं द्वारा | विद्यालय समिति का गठन किया गया, जिसके संचालन का दायित्व श्री रिखबराजजी कर्णावट और श्री रतनलालजी बोथरा को सौंपा गया। साहित्यिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण कार्य हुए। कुछ हस्तलिखित ग्रन्थ प्राप्त हुए जिन्हें जोधपुर | तथा जयपुर के ज्ञान भंडारों में भेज दिया गया। श्री चन्दनमलजी कर्णावट धूलचन्दजी ओस्तवाल, श्री माणकचन्दजी पारख, श्री पूसाराम जी छीपा आदि ने शीलव्रत लिए। बाइयों में दया की पंचरंगी एवं बड़ी तपस्याएं भी हुई। विद्यालय के छात्रों ने व्यसन त्याग के नियम लिए। भोपालगढ से श्रमणसंघ के उपाध्यायप्रवर पूज्य चरितनायक जोधपुर पधारे। जोधपुर के उदयभवन में गुरुदेव के अहिंसा-विषयक प्रवचन से प्रभावित होकर ठाकुर उदयसिंह जी ने शिकार आदि के रूप में आजीवन हिंसा नहीं करने और चैत्र मास में अभक्ष्य के त्याग का नियम लिया।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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