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________________ १०५ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड भगवान महावीर के धर्मसंघ रूपी रथ के साधु-साध्वी, श्रावक एवं श्राविका रूप चारों पहिये संघोत्कर्ष की दिशा में सक्रिय एवं द्रुतगतिशील होंगे तभी यह संघ अपने परम लक्ष्य पर पहुँच सकेगा। महिला-वर्ग, मातृ-वर्ग, श्राविका-वर्ग चतुर्विध संघ-रथ का चतुर्थ पहिया भी सुदृढ हो , यह आवश्यक है। मैं तो आप सभी माताओं बहनों से यह कहूँगा कि पुरुष वर्ग से पहले स्त्री-वर्ग में धार्मिक शिक्षा एवं आध्यात्मिक संस्कार अनिवार्यत: होने चाहिए। आप एक नहीं, दो-दो कुलों को रोशन करने वाली हैं, आप पुरुष की निर्मात्री हैं, उसे संस्कार देने वाली हैं। अत: आज के समाज में नारी वर्ग को बाल्यावस्था में ही धार्मिक पाठशालाओं के माध्यम से धार्मिक-शिक्षा दी जानी चाहिए। __ अत्यन्त प्रभावी, प्रेरणास्पद इन प्रवचनों से प्रेरित हो नागौर के समाज-सेवियों ने इसी वर्षावासकाल में कन्या-धार्मिक शिक्षा शाला की स्थापना कर बालिकाओं को धार्मिक शिक्षा देना प्रारंभ किया। इसी चातुर्मास में श्री हीरालाल जी गांधी (वर्तमान आचार्यश्री हीराचन्द्र जी म.सा.) ने अनेकशः दयाव्रत के साथ सामायिक, प्रतिक्रमण, २५ बोल आदि चरितनायक के चरणों में रहते हुए कण्ठस्थ कर लिए। आचार्यश्री की प्रेरणा से यहाँ भी जोधपुर की भांति श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ की स्थापना हुई। नागौर चातुर्मास के अनन्तर आप पीपाड़ पधारे, जहाँ पाली के श्रेष्ठी श्री हस्तीमलजी सुराणा ने दो बहनों एवं एक भाई की दीक्षा पाली में आयोजित करने हेतु विनति रखी। मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को पाली मारवाड़ में दीक्षा का भव्य आयोजन हुआ। इसमें पीपाड़ के श्री जालमचन्द जी चौधरी एवं दो बहनों घीसीबाई पाली एवं सुआबाई कांकरिया, भोपालगढ़ ने प्रव्रज्या-पथ पर अपने चरण बढ़ाए। दीक्षा के अनन्तर जालमचन्द जी का नाम जयन्तमुनि निर्धारित कर उन्हें स्वामी श्री अमरचन्द जी म. की निश्रा में रखा गया। श्रीमती सुआबाई का नाम महासती श्री शान्तिकंवर जी एवं घीसीबाई का नाम ज्ञानकंवर जी रखा गया। . सोजत सम्मेलन (संवत् २०१०) इधर सोजत में मंत्रि-मुनिवरों का सम्मेलन १७ से ३० जनवरी १९५३ तक आयोजित होना निश्चित हो गया, || अतः आचार्यश्री का विहार बिलाड़ा होते हुए सोजत की ओर हुआ। बिलाड़ा में स्वामी जी श्री रावतमल जी म, मरुधर केसरी श्री मिश्रीमल जी म. आदि श्रमणवरों से विचार-विमर्श हुआ। सम्मेलन में १४ मंत्री मुनिवर पधारे, जिन्होंने सादड़ी में हुए वृहद् साधु-सम्मेलन के पारित प्रस्तावों एवं नियमों को क्रियान्वित करने एवं समितियों को | निर्णयार्थ सौंपे विचारों को अन्तिम रूप देने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। इस सम्मेलन में चरितनायक ने अपने बुद्धिकौशल से संघ-ऐक्य के प्रति महती भूमिका निभायी। कुल ३३ निर्णय लिए गए एवं चरितनायक को मारवाड़ और गोड़वाड़ प्रान्त में साधु-साध्वियों के चातुर्मास, विहार, सेवा, आक्षेप निवारण और प्रचारकार्य की व्यवस्था का दायित्व सौंपा गया । आपको साधु-साध्वियों के पाठ्यक्रम तैयार करने हेतु निर्मित संयुक्त समिति तथा तिथिपत्र | समिति में सदस्य मनोनीत किया गया। सोजत सम्मेलन के पश्चात् चरितनायक श्रमण संघ के प्रधानमंत्री श्री आनंद ऋषि जी म. के साथ विहार करते हुए जोधपुर पधारे । यहाँ से मेड़ता, गोविन्दगढ़ होते हुए लाडपुरा पधारे। यहाँ लाडपुरा के श्री सुगनचन्द्र जी खटोड़ एवं भिनाय निवासी जड़ावकंवरजी की श्रामण्य दीक्षा ज्येष्ठ शुक्ला दशमी संवत् २०१० को सम्पन्न हुई। दीक्षा के
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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