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________________ १०० नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं | महावीर जयन्ती के अवसर पर पीपाड़ का शिष्ट मंडल अगले चातुर्मास की विनति लेकर उपस्थित हुआ। भावपूर्ण विनति स्वीकार कर ली गई। यहाँ से विहार कर विभिन्न ग्राम-नगरों को पदरज से पावन करते हुए आचार्य श्री | सोजत पधारे, जहाँ पं. रत्न पूज्य श्री आनन्द ऋषि जी म.सा. के साथ आपका मधुर मिलन हुआ। यहीं पर मुनि श्री | सहसमल जी म.सा. के साथ भी आपका प्रेम मिलन हुआ। संघ हित, समाचारी आदि अनेक विषयों पर दोनों महापुरुषों के साथ सार्थक विचार-विमर्श हुआ। सोजत से विहार कर आप, अक्षय तृतीया के अवसर पर सोजत रोड पधारे, जहाँ जोधपुर की अनेक तपस्विनी बहनों ने आकर वर्षीतप का पारणक किया। इस बीच आचार्य श्री की आज्ञा से मसूदा निवासी श्री धनराजजी रांका की सुपुत्री एवं श्री मांगीलालजी सोनी ब्यावर की धर्मपत्नी श्री सन्तोषकंवरजी की दीक्षा विक्रम संवत् २००७ ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को अजमेर में सम्पन्न हुई। सोजत रोड़ से विहार कर आचार्य श्री जैतारण, निमाज, मेडता, गोटन होते हुए भोपालगढ एवं फिर पीपाड़ पधारे। • पीपाड़ चातुर्मास संवत् (२००७) विक्रम संवत् २००७ के पीपाड़ चातुर्मास में आचार्य श्री द्वारा सम्पादित प्रश्न व्याकरण सूत्र एवं उनके प्रवचनों | की पुस्तक 'गजेन्द्र मुक्तावली' प्रकाशित हुई। द्वितीय पुस्तक का सम्पादन शशिकान्त जी झा द्वारा किया गया। चरितनायक की जन्म-स्थली के आबाल वृद्ध नर-नारी अत्यन्त उल्लसित होकर धर्माराधन का पूरा लाभ ले रहे थे। पीपाड़ नगर का वर्षावास सानन्द सम्पन्न कर आचार्य श्री मार्गस्थ ग्राम-नगरों को पावन करते हुए अजमेर पधारे एवं यहां विराजित स्थविरा वयोवृद्ध सतीवृन्द तथा संघ की विनति स्वीकार कर शेषकाल तक यहां ही विराजे। शेषकाल के अनन्तर आप सन्त-मण्डल के साथ अनेक ग्राम-नगरों में विचरण करते हुए विजयनगर पधारे । यहाँ मेड़तानगर के | शिष्टमण्डल ने उपस्थित होकर विक्रम संवत् २००८ का चातुर्मास अपने क्षेत्र में करने की विनति की । मेड़ता संघ की आग्रहभरी विनति को स्वीकार किया। • मेड़ता चातुर्मास (संवत् २००८) अनेक ग्राम नगरों को चरणरज से पावन करते हुए आचार्य श्री चातुर्मासार्थ मेड़ता पधारे। मेड़ता श्री संघ ने सामायिक, स्वाध्याय पौषध, उपवास, दया, दान आदि आराधना में अनुकरणीय उत्साह दिखाया। चातुर्मास में श्री जौहरी मलजी ओस्तवाल, श्री प्रेमराज जी मुथा, श्री हेमराजजी डोसी, श्री भूरमल जी बोकड़िया आदि सुश्रावकों की भक्ति सराहनीय थी। पर्युषण के आठों दिन बाजार बन्द रहा। यहाँ पर अखिल भारतीय स्थानकवासी जैन कांफ्रेन्स के मंत्री श्री धीरजभाई तुरखिया अपने शिष्टमंडल के साथ श्रमण-संघ के निर्माण की योजना पर विचार करने उपस्थित हुए। तब आचार्य श्री ने प्रस्तावित योजना को सबके लिए स्वीकार करने योग्य बनाने हेतु सुझाव देते हुए कहा कि यदि राजनैतिक पार्टियों के गठन की भांति श्रमण संघ का गठन भी प्रजातांत्रिक ढंग से किया गया तो धर्म के स्थान पर यह संघ अधिकार हथियाने का अखाड़ा बन जाएगा। उन्होंने शास्त्र प्रतिपादित श्रमणाचार को दृष्टिगत रखते हुए श्रमणसंघ का संविधान बनाने और श्रमण-श्रमणी वर्ग की समाचारी निर्माण करने पर बल दिया तथा ऐसा होने पर अपने सहयोग की सहर्ष स्वीकृति प्रदान की।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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