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________________ (प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड इस प्रकार अनेक ग्रामों में अहिंसा-धर्म का प्रचार करते हुए आचार्य श्री करमावास पधारे, जहाँ धार्मिक-शिक्षण की भी व्यवस्था थी। गुजरात के धारसी भाई यहाँ जैन संघ को ऊँचा उठाने हेतु प्रयत्नशील थे। उन्होंने अपने साथियों के साथ वारसी पधारने के लिए विनति की, जिसे स्वीकार कर आचार्य श्री वारसी पधारे, और संघ के धार्मिक भवन में ठहरे । यहाँ कोचेटा जी जैसे मारवाड़ी श्रावक भी रहते थे, जिन्हें समाज के लिये दर्द था। छात्रालय, सामूहिक-प्रार्थना और पुस्तकालय आदि चालू कर ज्ञान-वृद्धि करने की युवकों में भावना थी। मन्दिर मार्गी समाज के साथ भी अच्छा प्रेम था। कुछ समय तक यहाँ आध्यात्मिक, नैतिक एवं सामाजिक अभ्युत्थान के लिए मार्गदर्शन करने के अनन्तर आचार्यश्री पानगांव, वैराग, सैलगांव, बड़ाला, कारम्मा आदि क्षेत्रों में धर्म का प्रचार करते हुए शोलापुर पधारे। इन्हीं दिनों सं. १९९७ मार्गशीर्ष शुक्ला पञ्चमी को भोपालगढ़ में उगमकंवरजी (धर्मपत्नी सुखलालजी बाफणा) की दीक्षा बड़े धनकंवर जी म.सा. के सान्निध्य में सानंद सम्पन्न हुई। दीक्षोपरान्त आपका नाम महासती उगमकंवर ही रखा गया ।। शोलापुर में आचार्य श्री लिंगायत सम्प्रदाय के एक मकान में विराजे । प्राचीन काल में यहां शताब्दियों तक जैन धर्मानुयायी राजाओं का राज्य रहा। दिगम्बर जैन अच्छी संख्या में हैं, स्थानकवासी जैन समाज के घर बहुत कम हैं। दिगम्बर जैनों की कई शिक्षण संस्थाएं हैं, पत्र-पत्रिकाओं का भी प्रकाशन होता है। महाराष्ट्री भाषा में भी जैन पत्र प्रकाशित होता है। इधर की लिंगायत सम्प्रदाय पर जैन संस्कृति का प्रभाव परिलक्षित होता है। सिद्धप्पा, वसमप्पा आदि नाम प्राकृत भाषा की छाप छोड़ते थे। यहाँ से विहार कर आचार्य श्री टीकैकर, वाड़ी, हुंडगी, जंक्शन, जवलगी, ताडबल पधारे । ताडबल से विहार कर भीमानदी पर बने रेलवे पुल को पार करते हुए आचार्यश्री लच्चान पधारे। तदनन्तर हंडी, तडवल, अतरगी, नागाधाम आदि क्षेत्रों को अपनी पदरज से पुनीत करते हुए माघ (शुक्ला) पूर्णिमा के दिन बीजापुर पधारे। बीजापुर इतिहास प्रसिद्ध नगर है। छत्रपति शिवाजी का यह मुख्य कर्म-स्थल रहा। यहाँ धर्म का प्रचार कर आचार्यश्री जुमनाल, मूलवाड, हलद, गेहनूर, कोल्हार, वारगण्डी, सुनग, हनगवाड़ी आदि क्षेत्रों को फरसते हुए फाल्गुन शुक्ला दूज के दिन बागलकोट पधारे। स्थानीय लोगों में धर्म के प्रति गहन रुचि, शास्त्र-श्रवण की उत्कट अभिलाषा एवं सामायिक, स्वाध्याय, व्रत, नियम,प्रत्याख्यान की झड़ी से प्रमुदित हो आचार्य श्री ने यहां के संघ की प्रार्थना को स्वीकार कर होली चातुर्मास भी यहीं सम्पन्न किया। यहां श्री कन्हैयालालजी सुराना, बेताला जी आदि मुख्य श्रावक थे। यहां आसपास के अनेक क्षेत्रों के लोग सैकड़ों की संख्या में दर्शनार्थ आये। सबने अपने अपने क्षेत्र की विनतियां प्रस्तुत की। यहाँ रायबहादुर लालचन्द जी मूथा अपनी माताश्री और कतिपय श्रावकों के साथ गुलेजगढ़ में चातुर्मास हेतु विनति लेकर पुनः उपस्थित हुए। श्रेष्ठी श्री लालचन्द जी ने तख्जमल जी कटारिया के माध्यम से आचार्यश्री के विहार की परिधि में आये हुए सभी ग्रामों तथा उनके आस-पड़ौस के क्षेत्रों के स्थानकवासी परिवारों की जनगणना करवाई और सभी मुख्य-मुख्य श्रावकों को बागलकोट में | आमंत्रित किया। सबने मिलकर कर्नाटक प्रान्त की स्थानकवासी जैन सभा की स्थापना की। चैत्र कृष्णा एकम के दिन बागलकोट से सिरह होकर गुलेजगढ की ओर विहार किया। सतारा से गुलेजगढ तक श्री तख्तमलजी कटारिया विहार में मुनिमण्डल के साथ थे। बीजापुर से गुलेजगढ तक श्रेष्ठिवर श्री लालचन्द मुथा भी पद-विहार के समय आचार्य श्री की सेवा में रहे। गुलेजगढ़ में महावीर जयन्ती का महापर्व भी धर्माराधना
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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