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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ७६ सम्बन्ध था। फिर बहुश्रुत आचार्य श्री विनयचन्दजी महाराज के समय सरल स्वभावी आत्मार्थी श्री मयाराम म. का वात्सल्य सम्बन्ध रहा। इस चातुर्मास से पुरानी स्मृतियां जीवन्त हो उठी। चातुर्मास के पश्चात् स्वामीजी श्री भोजराजजी म. और श्री लक्ष्मीचन्दजी म. पूज्य उपाध्याय श्री आत्मारामजी म.सा. की सेवार्थ पाली तक साथ पधारे। पारस्परिक सौहार्द का यह अनूठा उदाहरण होने के साथ ही चरितनायक की सूझबूझ, विशालता एवं सरलता का प्रतीक था। आचार्य श्री बनाड़, दईकड़ा होते हुए भोपालगढ़ पधारे। स्वामीजी श्री भोजराजजी म. एवं श्री बडे लक्ष्मीचन्दजी महाराज ठाणा २ उपाध्याय श्री आत्मारामजी म. को पाली पहुंचाकर आचार्य श्री की सेवा में भोपालगढ पधार गए। पूज्य उपाध्याय श्री ने सन्तों की सेवा से प्रसन्नता व्यक्त की। यहाँ से नाडसर, रजलानी, बारणी आदि गांवों में धर्म-प्रचार करते हुए नागौर पधारे।। चरितनायक आचार्य भगवन्त का चिन्तन रहा कि चतुर्विध-संघ के संचालन, विकास एवं अभ्युदय में साध्वीमंडल की अहम भूमिका है। इतिहास याकिनी महत्तरा प्रभृति साध्वीमंडल द्वारा किये गये उपकार का साक्षी है। रत्नवंशीय साध्वी समुदाय को ज्ञान-दर्शन-चारित्र के क्षेत्र में विशेष ख्याति रही है। यह ख्याति - परम्परा और वर्धमान हो, इस हित-चिन्तन के अनुरूप यहाँ साध्वी-संघ के लिए एक अभ्युदयकारिणी मर्यादित दिनचर्या निश्चित की गई। महासती छोगांजी, अमरकंवर जी, बड़े धनकंवर जी आदि साध्वियाँ भी वहीं विराज रही थीं। अतः चतुर्विध संघ का एक मनोहारी समागम हुआ। परस्पर गहन विचार-विमर्श भी हुआ। • पीपाड़ चातुर्मास (संवत् १९९१) यहाँ से पुन: भोपालगढ, पीपाड़, जैतारण नीमाज, मेला का बिराँठिया , बर, ब्यावर एवं सेन्दडा को पावन करते हुए चौदहवां चातुर्मास करने वि.सं. १९९१ में पीपाड़ पधारे। चातुर्मास काल में धर्मदीप प्रदीप्त हुआ। श्री जुगराज जी मुणोत, सोहनमलजी कटारिया, केवलचन्दजी कांकरिया, सज्जनराजजी चौधरी, रावतमल जी मुथा आदि ने भजन-भाव एवं सन्त-सेवा में प्रगाढ रस लिया। अनेक तरुणों ने थोकड़े सीखे। चातुर्मास के प्रारंभ में आचार्य प्रवर की अनुमति से जोधपुर के महामन्दिर में महासती श्री सुगनकंवर जी ने आषाढी पूर्णिमा को संथारा ग्रहण किया था जो ५२ दिनों में भाद्रपद शुक्ला ७ को सीझा। दिवंगत साध्वीरत्ना को चार लोगस्स | से श्रद्धाञ्जलि दी गई। चातुर्मास में सतारा के सेठ श्री मोतीलाल जी मुथा, गुलेजगढ के लालचन्दजी मुथा तथा सिरेहमल जी आदि अनेक श्रद्धालुओं के परिवार दक्षिण-भारत से आकर मुनि-सेवा और धर्मध्यान में निरत रहे । | प्रज्ञाचक्षु धूलचन्दजी सुराणा की प्रतिभा सबको चकित किए बिना नहीं रही। यह चातुर्मास आध्यात्मिक ठाट-बाट से सानन्द सम्पन्न हुआ। तदुपरान्त विहार कर आप ठाणा ६ के साथ जोधपुर सिंहपोल में विराजे । __यहाँ दो विरक्त बहनों की संयम लेने की भावना फलवती हुई। माघ शुक्ला पंचमी के दिन जोधपुर निवासी स्व. सांवतराज जी बागरेचा की धर्मपत्नी स्वरूपकंवर जी एवं भोपालगढ़वासी श्री बख्तावरमल जी मूथा की धर्मपत्नी बदनकंवरजी की भागवती दीक्षा महासती. श्री अमरकंवर जी | महाराज की निश्रा में सम्पन्न हुई। इस अवसर पर पूज्य श्री जवाहरलालजी म. की परम्परा के श्री शोभागमल जी म.सा. भी उपस्थित थे। जोधपुर से आप ब्यावर में धर्मजागरण करते हुए अजमेर पधारे। यहाँ माहेश्वरियों के न्याति नोहरे में विराजे।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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