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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
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के प्रति कल्याणकामना एवं सुदृढ जैन संघ के अभिलाषी आचार्य भगवन्त का पदार्पण ही स्नेह-सरिता प्रवाहित करता और बिखरे हुए संघ सहज समन्वय के सूत्र में बंध जाते।
रतलाम में आचार्य श्री द्वारा धर्म-सौहार्द की प्रभावना हुई। तत्र विराजित सन्तों स्थविर मुनि श्री ताराचन्द जी म, पं रत्न श्री किशनलाल जी महाराज, मालव केसरी श्री सौभाग्यमल जी महाराज, कविवर्य श्री सूर्यमुनि जी महाराज, शतावधानी श्री केवलचन्द जी म. आदि के साथ संघहित के पारस्परिक विचारों का आदान-प्रदान, तत्त्व-चर्चा, ज्ञान-गोष्ठियाँ आदि एक ही मंच से हुए। धर्मनिष्ठ सुश्रावक श्री वर्धमान जी पीतलिया ने यहां चरितनायक से महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन प्राप्त किया। ____ जिनशासन के उत्थान और उत्कर्ष को दृष्टि में रखते हुए रतलाम के सभी सम्प्रदायों के प्रतिनिधियों ने आचार्यश्री की सेवा में विक्रम संवत् १९८९ का चातुर्मास करने की आग्रहभरी विनति की, जो स्वीकृत हुई। शेषकाल में रावटी, थांदला, पेटलावद, राजगढ़ क्षेत्रों को फरसते हुए आचार्य श्री इतिहास प्रसिद्ध धारानगरी पधारे जो संस्कृत भाषा के विकास स्थल, भारतीय संस्कृति एवं विविध कलाओं का केन्द्र एवं शक्तिशाली मालव राज्य की राजधानी रहा है।
स्थानकवासी परम्परा के लिए तो वस्तुतः धार नगर बड़ा ही ऐतिहासिक महत्त्व का नगर है। विक्रम सम्वत् १७५९ में यहाँ धर्मप्राण आचार्य श्री धर्मदास जी महाराज ने अपने एक शिष्य को स्वेच्छापूर्वक ग्रहण किये हुए संथारे से विचलित देखकर जिनशासन की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए स्वयं ने उसका स्थान ग्रहण कर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
आचार्यश्री धर्मदास जी महाराज विक्रम की अठाहरवीं शताब्दी के एक महान् क्रियोद्धारक, प्रभावक एवं धर्म प्रचारक आचार्य हुए हैं। वर्तमान में मारवाड़ मेवाड़, मालवा तथा सौराष्ट्र आदि प्रान्तों में विचरण करने वाले अधिकांश साधु-साध्वीवृन्द उन्हीं की शिष्य सन्तति में हैं।
. आचार्यश्री ने अपने उद्बोधन में धारनगर के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि यहाँ के जैन श्रावक शिरोमणि ने मुगलकाल में धार के लोगों के जीवन और धन की रक्षा के लिए जो अप्रतिम शौर्य, साहस और त्याग | दिखाया वह इतिहास का बेजोड़ उदाहरण है, जिस पर जैन समाज को गर्व है।
जैन संघ के गौरव की प्रतीक एवं प्रासङ्गिक होने से इस ऐतिहासिक घटना का विस्तृत उल्लेख किया जा रहा है। एक बार मुगलों की एक सशक्त विशाल सेना ने धारनगर को चारों ओर से घेर लिया। शत्रुओं से रक्षा के लिए नगर के प्रवेश द्वारों के लोह कपाट बंद कर दिये गये। मुगल सेनापति ने नगर द्वारों और परकोटे के बाहर घोषणा करवा दी कि कल मध्याह्न से पूर्व २० सहस्र स्वर्णमुद्राएं नगर निवासियों से एकत्रित कर प्रस्तुत कर दी जाएं, अन्यथा नगर को कत्लेआम करवा कर लूट लिया जायेगा।
सेनापति की इस घोषणा से चारों ओर त्राहि-त्राहि, भय और आतंक का साम्राज्य छा गया। मुगलों की विशाल सैन्य शक्ति के समक्ष मुट्ठी भर नगर रक्षक सेना आटे में नमक तुल्य थी। निर्दोष नर-नारियों के सम्भावित हत्याकांड से नगर सेठ द्रवित हो उठा। कुछ क्षण विचारमग्न रहा और फिर अपने आसन से उठा। तलवार, ढाल और भालों से सुसज्जित हो घोड़े पर आरूढ़ हुआ और अंगरक्षकों के साथ चल दिया।
नगर सेठ ने नायक से भेंट की। नायक ने सेनापति को संदेश देते हुए कहा-“सल्तनत-ए- मुगलिया की | जांबाज फौजों के आलाकमान की खिदमत में धारनगर के नगर श्रेष्ठी हाजिर होना चाहते हैं। हुजूर ! ऐसा जांबाज )