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जीतहान
एकोऽहं बहु स्याम्
[४६२-4
ॐ तत्सत्
जगतनी शुक्ल अने कृष्ण गतिनो स्पष्टतादर्शक
वृक्ष आ
वितयाण (कृष्ण)
भागांनी गतिनी समजूती
वृक्ष आ
देवयान ( शुक्ल) अने
(१७-आ, ब्रह्म, आत्मा, तत् इत्यादि / (वृक्ष अ अंक १ जुओ)
(१६-आ) साक्षी, ईश्वर, द्रष्टा
(वृक्ष अ अंक २ जुओ)
इक्षण वा काळशक्ति
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(१५-आ) प्रकृति, माया (वक्ष अ अंक ३) अथवा अपरा प्रकृति
। प्राज्ञ अभिमानी ईश्वर (वृक्ष अ अंक २ थी ५ जुओ) (१४ आ) तेजस् अभिमानी हिरण्यगर्भ
(वृक्ष अ अंक : थी १२ जुओ) (१३-आ) विश्व किंवा विराटना अभिमानी ब्रह्मदेव ।
(वृक्ष अ अंक १३) तथा(१२-आ) समष्टि. ब्रह्माण्ड, विराटनो स्थूलदेह
(वृक्ष अ अंक १४ थी १५ घ) । (११-आ) ब्रह्मलोक वा परमेष्ठीमण्डल