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(५) समुद्र तथा स्वभूरमण समुद्र का जल भी स्वर्ण कलशों में भरकर लाया गया था।
इस प्रकार ऊपर कहे हुए जल से भगवान का अभिषेक किया गया था। देवगणों के द्वारा अभिषेक हो जाने के पश्चात् नाभिराजा को आगे लेकर के, जो बड़े-बड़े राजा थे सभी ने मिलकर ऋषभदेव का अभिषेक किया। इसके पश्चात् नगर निवासियों ने सरयू नदी का जल लाकर भगवान के चरणों का अभिषेक किया। अभिषेक हो जाने के बाद भगवान को न अधिक गर्म और न अधिक ठण्डे जल से स्नान कराया गया, बाद में स्वर्ग से लाये हुए नाना प्रकार के वस्त्र और आभूषणों से अलंकृत किया गया। जब सम्पूर्ण अलंकारों से भगवान विभूषित हो गये तब नाभिराजा ने “महामुकुटबद्ध राजाओं के अधिपति भगवान ऋषभदेव ही हैं," यह कहते हुए अपने मस्तक का मुकुट उतारकर भगवान के मस्तक पर धारण किया था।
राज्याभिषेक के समय अयोध्यापुरी को खूब सजाया गया था। मकानों के अग्र भाग पर लगी हुई पताकाओं से आकाश भर गया था। उस समय राज-मंदिरों में बड़ी धूम-धाम से आनंद-भेरियां बज रही थीं, स्त्रियाँ मंगलगान गा रही थीं, और देवांगनाएँ नृत्य कर रही थीं। देवों के बन्दीजन मंगलों के साथ-साथ भगवान के पराक्रम को पढ़ रहे थे और देवलोग संतोष से “जय जीव” इस प्रकार की घोषणा कर रहे थे।
त्रिषष्टि शलाका पुरुषचरित्र में सगर के राज्याभिषेक का भी वर्णन आता है। सगर का अभिषेक करने के लिए सभी राजाओं में श्रेष्ठ अजितनाथ स्वामी ने तीर्थजल लाने के लिए नौकरों को आज्ञा दी थी। वह शीघ्र ही कमल के ढके हुए कुभ में स्नान करने योग्य तीर्थजल लेकर वहाँ आ गए। व्यापारी लोग राज्याभिषेक के दूसरे साधन तत्काल ही वहाँ ले आए । मंत्री, सेनापति और बन्धु-बान्धव भी शीघ्र ही एकत्र हो
१. महा पु० १६/२०९-२१५ पृ० ३६४-३६५. २. वही १६/२३१ पृ० ३६६. ३. महा पु० १६/२३१, पृ० ३६६. ४. वही १६/१९७-१९८ पृ० ३६१.