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________________ है।' महापुराण में राजा के भोग के साधनों का भी वर्णन है। उसके अनुसार रत्न सहित नव निधियां, रानियाँ, नगर, शय्या, आसन, सेना, नाट्यशाला, बर्तन, भोजन एवं वाहन आदि राजा के दस भोग के साधन होते थे। उक्त पुराण में ही अन्य स्थान पर अशोक वृक्ष, दुन्दुभि, पुष्पवष्टि, चमर, उत्तम सिंहासन, अनुपम वचन, ऊँचा छत्र, और भामण्डलये आठ चक्रवर्ती राजा के ऐश्वर्य निरूपित हैं।' ___ चक्रवर्ती के पास चौदह रत्न और नौ निधियाँ होती थीं। वे चौदह रत्न इस प्रकार हैं : १. चक्र रत्न : यह आयुधशाला में उत्पन्न होता था। सेना के आगे-आगे प्रयाण करता हुआ चक्रवर्ती को षट्खण्ड साधने का मार्ग दिखाता था। चक्रवर्ती इसकी सहायता से शत्र का शिरच्छेदन भी कर सकता था। २. छव-रत्न : यह रत्न बारह योजन लम्बा और चौड़ा होता था। छत्राकार के रूप में सेना की सर्दी, वर्षा एवं धप से रक्षा करता था। छत्री की भांति इसको लपेटा भी जा सकता था। ३. दण्ड-रत्न : यह विषम मार्ग को सम बनाता था। वैताढ्य पर्वत की दोनों गुफाओं के द्वार खोलकर उत्तर भारत की ओर चक्रवर्ती को पहुंचाता था। दिगम्बर परम्परा के अनुसार वृषमाचल पर्वत पर नाम लिखने का कार्य भी यह रत्न करता था। १. मनु० ७/४-८, शुक्र १/७१-७२, मत्स्य पृ. २२६/१. २. सरला निधयो दिव्याः पुरं शय्यासनेचमः।। नाट्यं समाजनं भोज्यं वाहनं चेततानि वै ॥ महा पु० ३७/१४३. ३. जयति तरूरशोको दुन्दुभिः पुष्पवर्षम् चमरिरूहसमेतं विष्टरं संदहमुद्वद्यम् । वचनमसममुच्चरातपत्रंच तेजः त्रिभुवन जयचिन्हं यस्म सार्यो जिनाऽसौ ॥ महा पु० ३५/२४४: ४. त्रि० श० पु० चः हेमचन्द्राचार्य भावनगर श्री जैन आत्मानंद सभा १९३७ १/४,
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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