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(५४) . जैन ग्रंथ आचारांग सूत्र में कई प्रकार के राज्यों का उल्लेख किया गया है। जैसे:-गणराज्य, द्वराज्य और वैराज्य ।' पद्मपुराण के अनुसार सामान्यतया एक राज्य का प्रचलन था, परन्तु कभी-कभी दो राजाओं द्वारा सम्मिलित रूप से शासित देश का दृष्टांत मिलता है, उसे महापुराण में द्वै राज्य की संज्ञा प्रदान की गई है। निशीथचूर्णी में सात प्रकार के राज्यों का वर्णन मिलता है। अनाराज्य (अराजक), जुवराज्य, वेरज्ज, विरुधराज्य, दोराज्य, गणराज्य और राज्य । लेकिन इन राज्यों में से केवल वेरज्ज (वेराज्य), गणराज्य, दोरज्ज (द्वै राज्य) ही राज्य के प्रकार की कोटि में रखे जाते हैं। अन्य राज्य विशिष्ट तरह की राजनीतिक स्थितियों के सूचक हैं, न कि स्वतंत्र राज्य के प्रकार हैं। ३. राज्य के उद्देश्य एवं कार्य :
पद्म पुराण में बणित है कि इच्छानुसार कार्य करना ही राज्य कहलाता है। महापुराण में उस राज्य की निन्दा की गई जिसका ध्येय अश्रेयस्कर है तथा जिसमें निरन्तर पापों की उत्पत्ति एवं सुख का अभाव है सशक्ति मनुष्य महान दुःख प्राप्त करते हैं। डॉ० अल्तेकर का मत है “शान्ति, सुव्यवस्था की स्थापना और जनता का सर्वांगीण, नैतिक, सांस्कृतिक और भौतिक विकास करना ही राज्य का उद्देश्य था।६
१. आचारांम सूत्र : सम्पा० नथमल, लाडनूं (जोधपुर) वि०स० २०३१ १/३/१६० २. पद्मपुराण १०६/६५. ३. जैन आगामें में चार प्रकार के वैराज्य का उल्लेख मिलता है :(१) अणराज :- राजा की मृत्यु हो जाने पर यदि अन्य राजा या युवराज का
अभिषेक न हुआ हो तब उसे अणराज कहते हैं। (२) जुवराज :-पहले राजा द्वारा नियुक्त युवराज से अधिष्ठित राज्य, जब तक दूसरा युवराज अभिषिक्त्त न किया गया हो, को युवराज कहा गया है। (३) वैराज्जय या वैराज्य :-अन्य राज्य की सेना ने जब राज्य को घेर लिया हो तो
वैराज्जय कहते हैं। ४. स्वेच्छाविधानमात्रं हिननु राज्य मुद्राहृतम् पद्म पु० ८८/२४. ५. राज्ये न सुख लेशोऽपि दुरन्ते दुरिता वहे । __ सर्वतश्ङ् कमानस्य प्रत्युतात्रा सुखं महत् ।। महा पु० ४२/२०. ६. प्राचीन भारतीय शासन पद्धति पृ० ४०.