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( २३ ) आज के निष्पक्ष विद्वानों का यह स्पष्ट मत है कि हमें प्राक्कालीन भारतीय परिस्थिति को जानने के लिए जैन पुराणों से, उनके कथा ग्रंथों से सहायता प्राप्त होती है । इतिहास का संक्षिप्त भण्डार जैन पुराणों में मिलता है।' जन पुराणों की भाषा एवं रचना काल :
___ जब पारम्परिक पुराणों को अन्तिम रूप दिया जा रहा था, उस समय उनके अनुकरण एवं साम्प्रदायिक प्रेरणा एवं आवश्यकता से जैनाचार्यों ने पुराणों की रचना की । अपने धर्म के प्रचार के लिए जैनाचार्यों ने सर्वप्रथम जन-साधारण की बोलचाल की भाषा को ही जैन साहित्य की भाषा बनाया। इसलिए समय-समय पर परिवर्तित परिस्थिति में जैन पुराणों की रचना हुई। चूंकि पारम्परिक पुराणों का रचनाकाल अज्ञात है। किन्तु जैन पुराणों के रचनाकाल तथा रचनाकारों के विषय में पर्याप्त जानकारी प्राप्त हो जाती है। इससे विभिन्न पुराणों की तिथि निर्धारण करने में सुविधा होती है ।
गुप्तोत्तर काल में लोगों की बोलचाल की भाषा प्राकृत थी। इसलिए जैनों ने प्राकृत में जैन पुराणों की रचना की है । (प्राकृत के बाद) संस्कृत भाषा के महत्त्व को स्वीकार करके जैन विद्वान इस क्षेत्र में भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने बड़ी संख्या में पुराणों का प्रणयन किया। इसके बाद अपभ्रंश भाषा लोकप्रिय हो गयी तो जैनाचार्यों ने अपभ्रंश में पुराणों की रचना की। इसके साथ ही जैनों ने क्षेत्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में भी पुराणों की रचना की है।
जैन पुराणों जी रचना विभिन्न कालों में हुई है। प्राकृत जैन पुराणों का रचनाकाल छठी शती से लेकर पन्द्रहवीं शती तक, संस्कृत पुराणों का समय सातवीं शती से अट्ठारहवीं शती तक और अपभ्रंश पुराणों की तिथि दसवीं शती से सोलहवीं शती है। प्रायः ये सभी जैन पुराण प्राकृत, संस्कृत या अपभ्रश में से किसी एक ही भाषा में हैं, इस प्रकार सभी जैन पुराणों का रचनाकाल लगभग छठी शती से अट्ठारहवीं
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१, फूलचन्द : "जैन पुराण साहित्य", श्रमण १६५३, वर्ष ४, अंक ७-८, पृ० ३६
तथा महा• पु० पृ० २०..