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________________ ( २०७ ) " भारतीय राजनीति : जैन पुराण साहित्य संदर्भ में" विषय का अध्ययन करने के लिए जिन मूल पुराणों को आधार बनाया है उनका संक्षिप्त परिचय भी इसमें निहित है । तृतीय प्रध्याय: " जैन पुराण साहित्य में राजनीति" इस अध्याय में मैंने जैन पुराण साहित्य में राजनीति" का संक्षिप्त में चित्र अंकित किया है । इसके अन्तर्गत प्रथम कालचक्र के बारह आरों ( काल - विभागों ) का निर्देश किया गया है । अवसर्पिणी, असर्पिणीकाल तथा इनका छः छः भागों में विभक्त होना और प्रत्येक आरे का प्रमाण भी बताया गया है । इसके अलावा राजकीय व्यवस्था से पूर्व जो कुलकर व्यवस्था थी उसका वर्णन तथा कुलकरों की संख्या के विषय में जो मतभेद बताये गये हैं उनका वर्णन किया गया है। कुलकरों के समय की प्रचलित दण्डनीति, इसके पश्चात् जैन पुराणों में राजा तथा राज्य की उत्पत्ति किस प्रकार हुई उसका संक्षिप्त वर्णन किया गया है । चतुर्थ अध्याय : " राज्य एवं राजा " इस अध्याय को दो विभागों में विभक्त किया गया है । प्रथम विभाग में राज्य का स्वरूप एवं सिद्धान्त बताये गये हैं । द्वितीय विभाग में राजा के विषय में चर्चा की गयी है । प्रथम विभाग में राज्य के स्वरूप एवं सिद्धान्त के अन्तर्गत राज्य की उत्पत्ति किस प्रकार हुई, राज्य के प्रकार, राज्य के उद्देश्य एवं कार्य, राज्य के सप्तांग सिद्धान्त, राज्य के चतुष्ट्य सिद्धान्त, राज्य के षड्सिद्धान्त, का वर्णन किया गया है। राज्य के दो कार्य बताये गये हैं(१) आवश्यक कार्य ( २ ) ऐच्छिक कार्य या लोकहितकारी कार्य । आवश्यक कार्यो के अन्तर्गत बाह्य आक्रमण से देश की रक्षा, प्रजा के जान-माल का संरक्षण, देश में शान्ति एवं सुव्यवस्था के लिए न्याय प्रबन्ध आदि कार्य सम्मिलित हैं । ऐच्छिक कार्यों में शिक्षा, दान, स्वास्थ्य-रक्षा, व्यवसाय, डाक, यातायात का प्रबन्ध, दीन - अनाथों की देखरेख आदि का वर्णन किया गया है। जैन पुराणों में हालांकि राज्य के कार्यों का विस्तृत वर्णन नहीं है तथापि उसके अध्ययन से उपर्युक्त विचारों की पुष्टि होती है ।
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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