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________________ (२) "अर्थ" और "दण्ड" का स्थान आगे चलकर "नीति" शब्द ने लिया। . नीति-शास्त्र का अर्थ है उचित और अनुचित कायौं को बताना। नीतिशास्त्र में मानव समाज के विभिन्न वर्गों के कर्तव्यों का वर्णन निहित होता है। भर्तृहरि का प्रसिद्ध नीति-शतक विशाल अर्थ मे नीति की चर्चा करता है। कामंदक व शुक्र के शासन-शास्त्र सम्बन्धी ग्रंथ “नीति-शास्त्र" नाम से ही प्रसिद्ध है। वैयक्तिक जीवन में जितना योग्य मार्ग से जाना महत्त्वशील है, उससे भी अधिक वह राजकीय क्षेत्र में है, कारण कि यदि थोड़ी-सी भी भूल हो जाये तो समाज बहुत कष्ट में पड़ जाता है। नीतिशास्त्र का ध्येय जिस प्रकार समाज का सर्वांगीण विकास करना है वैसा ही ध्येय शासन-शास्त्र का था। इसलिए नीति-शास्त्र शब्द राजनीति-शास्त्र के अर्थ में उपयोग आने लगा।' अब प्रश्न यह उठता है कि राजनीति का नाम अर्थ-शास्त्र किस प्रकार पड़ा ? अर्थशास्त्र का अर्थ है, "जनपद सम्बन्धी शास्त्र" । "अर्थ" का अभिप्राय मनुष्यों की बस्ती, अर्थात् वह प्रदेश जिसमें मनुष्य बसते हों। अर्थ-शास्त्र उस शास्त्र को कहते हैं जिसमें राज्य की प्राप्ति और उसके पालन के उपायों का वर्णन हो। अर्थ-शास्त्र में उद्धत है कि कौटिल्य अपने इस ग्रन्थ को प्रथम दण्डनीति नाम देना चाहते थे, किन्तु अन्त में उनका मत बदल गया और "अर्थनाम" निश्चित कर दिया। उपर्युक्त विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि राज-शास्त्र इतिहास में सर्वप्रथम "राजधर्म" के नाम से जाना जाता था, इसके पश्चात् दण्डनीति यह नाम लोकप्रिय हुआ। आगे चलकर अर्थ-शास्त्र, राजनीति-शास्त्र, नीति-शास्त्र यह नाम अधिक लोकप्रिय हुए। १. सर्वोपजीवकं लोकस्थितिकृन्नीतिशास्त्रकम् । धर्मार्थकाममूलं हि स्मृतं मोक्षपतं यत । शुक्रनीति सार : भाषान्तरकर्ता इच्छाराम सूर्यराम देसाई, बम्बई : गुजराती प्रिटिंग प्रेस : १६६७, १/५। २. कौटिलीय अर्थशास्त्रम् : अनु० रामतेज शास्त्री, काशी : पण्डित पुस्तकालय, ___अ० १५/१।
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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