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(११२) इच्चकहा में मंत्री', महामंत्री', अमात्य', प्रधान अमात्य, सचिव', प्रधान सचिव का उल्लेख है। आचार्य सोमदेव मंत्री तथा अमात्य में भेद प्रदर्शित करते हैं । इसी उद्देश्य से उन्होंने मंत्री तथा अमात्य दो पृथक समुद्देशोंकी रचना की है। सम्भवतः सोमदेव ने मंत्री शब्द का प्रयोग महामंत्री एवं अंतरंग परिषद के मंत्रियों के लिए किया है । तथा अमात्य शब्द का प्रयोग मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों एवं राज्याधिकारियों के लिए किया है।
अतः स्पष्ट होता है कि अमात्य मंत्रिपरिषद के सदस्य होते थे किन्तु उनको मंत्रणा का अधिकार प्राप्त नहीं था। मंत्रणा केवल सर्वगुण सम्पन्न, पूर्णरूपेण परीक्षित एवं विश्वसनीय मंत्रियों से ही की जाती थी। इस प्रकार मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या तो अधिक होती थी, किन्तु अन्तरंग परिषद में केवल तीन या चार मंत्री होते थे और उन्हीं के साथ राजा गहन विषयों पर मंत्रणा करता था। महाभारत से भी इस बात की पुष्टि होती है।
अतः उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि जैन ग्रन्थों में कार्यक्षेत्र के अनुसार मंत्री, अमात्य तथा सचिव को मंत्रिगण के रूप में तथा प्रधानमंत्री, प्रधान अमात्य और प्रधान सचिव को प्रधान मंत्री के रूप में निर्दिष्ट किया गया है।
१. समराइच्चकहा : हरिभद्रसूरिकृत :- पं० भगवानदास, अहमदाबाद : जैन
सोसायटी १९३८, १ पृ० २१, ६८, ४, २५७-५८-५६, २७२, २८३, २६५;
६, ५६८, ६३०-३१, ६६२, ६६५, ७०७ ; ६, ८३२, २. वही २ पृ० १४५, १५१ ; ४, २६५. ३. वही २ पृ० १४६ ; ३, १६६ ; ४, २७३-७४ ; ७, ६३१-३२-३३ ; ८, ८३७;
८,८६७-६८, ६३५, ६७८. ४. वही ७ पृ० ६६३-६४-६५, नि० पू० २, पृ० ४४६. ५. समराइच्चकहा ३ पृ० १६२ ; ६, ८८१. ६. नीतिवाक्यामत में राजनीति पु० ८६. ७. महाभारत शान्तिपर्व ८३/४७.