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मांडवगढका मन्त्री
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वहां क्षेत्रपाल के उपद्रवको हटाकर जिनालय का जिर्णोद्धार कराकर सात मंजिलवाला जिनेश्वर देवका प्रासाद बनवाया। वहां से अनुक्रमसे सघ आबूराज पहुंचा। संघवी ने मोतियों के स्वस्तिक प्रमुख से जिनेश्वर देवकी
जक्तिकी । आबू की यात्रा करके पाचनपुर, पाटन, आदि नगरों में दो कर कितने के दिनों में संघ निर्विघ्नता से श्री शत्रुञ्जय तीर्थ को देखने लगा यानी रसे गिरीराज के दर्शन करने लगा । उल रोज वहीं पर पमात्र माल कर मं
श्वर ११ * मूढा गेहूं क] ( लाल रंग को )
"माण्डवगढनो मंत्री” नामक पुस्तक के २३२ वें पृष्ट में " संघ अणहिल्लपुर पाटन में आया, वहां यात्रा करके अनुक्रम से शत्रुञ्जय पर्वत पर आया, वहां एक बड़ा स्वामी वात्सल्य किया ***