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मांडवगढका मन्त्री
योगीराज की आज्ञानुसार देदाशाह अपनी क्रिया से सुवर्ण बनाता और बहुत से दीन दुःखियों का दुःख दूर करने में सदैव तत्पर रहता था ।
जब उसकी दया और परोपकारिता की खुशबू फैलने लगी और राजा प्रजा को मालूम हुआ कि दाशाह सुख चैनसे रहता है और उसके पास बहुतसा द्रव्य है तब किसी बहाने से उस राजाने देदाशाह को कैद करलिया! जिससे उसको सुपत्नि बिमला सेठानी से उसका त्रियोग हुआ, परन्तु श्री स्थंजन पार्श्वनाथ के ध्यान के प्रजावसे वह आफत शीघ्रही नष्ट हो गई और देदाशाह व उसकी पत्नि सकुशल "विद्यापुर" चलेगये ।