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करें । पेथडशाहके संबंध भी यात्रादिके प्रसंगों पर कुछ विशेष विचार करना चाहाथा परंतु स्थान और समयके संकोचसे इतनेसे ही संतुष्ट होकर विशेष जिज्ञासुओंको सुकृतसागर ग्रंथके देखनेकी सूचना करता हुआ संक्षिप्त रुचिवालोंको इसो ग्रंथको सायन्त पढनेकी प्रार्थना करता हुआ अपनी स्खलनका मिथ्या दुष्कृत देता हुआ पुनरपि ऐसे शुभ कार्यके करनेकी अभिलाषा रखता हुआ पाठक महोदय क्षमा कीजिये मैं आपसे विदा होता हूं।
निवेदकसुप्रसिद्ध जैनाचार्य १०८ श्रीमद्विजयानन्दसूरि (आत्मारामजी) शिष्यरत्न स्वनामधन्य श्री लक्ष्मीविजयजी शिष्यमुनि महाराज श्री हर्षविजयजी शिष्य प्रसिद्ध विद्या प्रेमी मुनि श्री वल्लभविजयजी शिष्य पंन्यास मुनि ललितविजय.
होशियारपुर (पंजाब.) विक्रम १९८० श्रावण शुक्ला द्वितीया।