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है, परंतु वह सब ग्रंथ संस्कृत भाषामें होनेसे आजकालके संस्कृत विद्याके प्रायः प्रतिपंथिरूप जमाने में सर्व साधारणको उपकारी नहीं हो सकते हैं। इसी वास्ते इसको गुजराती माषामें किसी प्रकार मिहनत परिश्रम उठाकर-विक्रम संवत् १९७० में अहमदाबाद निवासी श्रद्धालु धर्मात्मा शेठ मोहनलाल मगनलाल ज्हौरीने किसीकी मारफत लिखवा कर प्रकाशित कराया है । बेशक ! सेठजी साहबने गुजरात देशवासी एवं गुजराती भाषाके प्रेमियोंको तो पेथडशाहके चरित्रामृतका पान कराया, परंतु इस गुजरातो भाषाके अनभिज्ञ संस्कृतशून्य इतर भाइयोंके लिये तो वही बारांवरसी कालवाला ही हिसाब बना रहा ! तथापि “बहुरत्ना वसुंधरा" " परोपकाराय सतां विभूतयः” के हिसाबसे लब्ध प्रतिष्ठख्याति पात्र-स्वनाम धन्य-शान्तमूर्ति मुनिमहाराज १०८ श्री हंसविजयजी महाराजने हिन्दी भाषा प्रेमियों के उपकारार्थ यह मुश्लाघ्य उद्यम किया है। आपको सच्चारित्रना, सदाचार-कर्तव्यपरायणता, विरक्तता, उदारता, उपकारिता आदि अनेक गुगोंसे
भरी हुई जीवनोको पढनेसे अवश्य आनंद प्राप्त होता . है। आपकी जीवनी हसविनोद नामा पुस्तकको