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पुण्यात्माने आचार्य महाराजश्रीके नगर प्रवेशोत्सव में दानादि शुभ कार्यों में एक लाख रुपयोंका व्यय कियाथा |
श्री ऋषभदेव, श्रीशान्तिनाथ, श्रीनेमिनाथ, श्री पार्श्वनाथ, और श्री महावीर स्वामी इन पांच तीर्थकरों के पांच मंदिर बनवाये । एक ११ सेर सोनेकी और एक २२ सेर चांदीकी एवं दो श्री जिनप्रतिमा बनवई' । इन सब मंदिरोंकी और प्रतिमाओंकी प्रतिष्ठा जाडशाहने इन्ही पूर्वोक्त आचार्य महाराज से करवाईथी । प्रतिष्ठामें उदार दिलके जावडशाहने ११ लाख द्रव्य व्यय कियाथा ।
वाहरे ! मांडवगढ ! तुझे नगर कहिये कि पुप्यभूमि या स्वर्ग कहिये ?
अंतिम प्रमाण हमें पट्टावलियों द्वारा यहां तक मिलता है कि, जहांगीर बादशाहके राजकालतक इस नगरीकी ध्वजा खूब फहरातीथी । उक्त बादशाह इसी नगर में श्री विजयदेव सुरिजीको महातपा को पदवी दी थी।
इस घटनाका समय विक्रम संवत् १६७४ है । अभीतक जिन महापुरुषोंका अर्थात् संग्रामसिंह सोनी, जावडशाह और श्री विजयदेवसूरिजीका उल्लेख